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Monday 21 December 2020

भोर विभोर


 भोर विभोर


उदयांचल पर फिर से देखो  

कनक गगरिया फूटी 

बहती है कंचन सी धारा 

चमकी मधुबन बूटी 


दिखे सरित के निर्मल जल में 

घुला महारस बहता 

हेम केशरी फाग खेल लो 

कल कल बहकर कहता 

महारजत सी मयूख मणिका 

दिनकर कर से छूटी।।


पोढ़ रही हर डाली ऊपर 

उर्मि झूलना झूले 

स्नेह स्पर्श जो देती कोरा 

बंद सुमन भी फूले 

रसवंती सी सभी दिशाएं 

नीरव चुप्पी टूटी।।


नील व्योम पर कलरव करती 

उड़े विहग की टोली 

कितनी मधुर रागिनी जैसी 

श्याम मधुप की बोली 

कुंदन वसन अरुण ने पहने 

बीती रात कलूटी।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

13 comments:

  1. उदयांचल पर फिर से देखो
    कनक गगरिया फूटी
    बहती है कंचन सी धारा
    चमकी मधुबन बूटी
    ... भाव विभोर कराती अनुपम रचना आदरणीया कुसुम जी। लाजवाब सृजन।

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  2. बहुत खूब..लगा महादेवी जी की रचना पढ़ रही हूँ.सुन्दर शब्दों की आभा से सुसज्जित कृति..

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (23-12-2020) को   "शीतल-शीतल भोर है, शीतल ही है शाम"  (चर्चा अंक-3924)   पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

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  4. भोर का आगमन नव निर्माण की आशा ... मधुर भाव ...

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  5. उदयांचल पर फिर से देखो, कनक गगरिया फूटी
    बहती है कंचन सी धारा, चमकी मधुबन बूटी''
    क्या बात है ! वाह

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  6. वाह! बहुत ही सुंदर सराहनीय सृजन दी।
    प्रकृति और आपका गहन संबंध है।
    उम्दा अभिव्यक्ति।

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  7. बेहद खूबसूरत रचना सखी 👌

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  8. हृदय पुष्प को अत्यंत कोमलता से मानो खोला जा रहा हो .... मधुर गुंजन ।

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  9. प्रकृति आपके दिल के काफी करीब है,बहुत ही मनमोहक कविता,सादर नमन कुसुम जी

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  10. सुंदर अभिव्यक्ति

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  11. नील व्योम पर कलरव करती

    उड़े विहग की टोली

    कितनी मधुर रागिनी जैसी

    श्याम मधुप की बोली

    कुंदन वसन अरुण ने पहने

    बीती रात कलूटी।।
    वाह वाह... भोर विभोर से मन विभोर हो गया
    बहुत ही सुन्दर मनोरम भोर का चित्र मनमस्तिष्क में अंकित करता लाजवाब नवगीत अद्भुत बिम्बों के साथ।

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