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Wednesday 16 December 2020

अप्रतिम सौंदर्य


 अप्रतिम सौन्दर्य 


हिम  से आच्छादित 

अनुपम पर्वत श्रृंखलाएँ

मानो स्फटिक रेशम हो बिखर गया

उस पर ओझल होते 

भानु की श्वेत स्वर्णिम रश्मियाँ 

जैसे आई हो श्रृँगार करने उनका 

कुहासे से ढकी उतंग चोटियाँ 

मानो घूँघट में छुपाती निज को

धुएँ सी उडती धुँध

ज्यों देव पाकशाला में

पकते पकवानों की वाष्प गंध

उजालों को आलिंगन में लेती

सुरमई सी तैरती मिहिकाएँ 

पेड़ों पर छिटके हिम-कण

मानो हीरण्य कणिकाएँ बिखरी पड़ी हों

मैदानों तक पसरी बर्फ़ जैसे

किसी धवल परी ने आंचल फैलया हो

पर्वत से निकली कृष जल धाराएँ

मानो अनुभवी वृद्ध के

बालों की विभाजन रेखा

चीङ,देवदार,अखरोट,सफेदा,चिनार 

चारों और बिखरे उतंग विशाल सुरम्य 

कुछ सर्द की पीड़ा से उजड़े 

कुछ आज भी तन के खड़े 

आसमां को चुनौती देते

कल कल के मद्धम स्वर में बहती नदियाँ 

उनसे झांकते छोटे बड़े शिला खंड 

उन पर बिछा कोमल हिम आसन

ज्यों ऋषियों को निमंत्रण देता साधना को

प्रकृति ने कितना रूप दिया  कश्मीर  को

हर ऋतु अपरिमित अभिराम अनुपम

शब्दों  में वर्णन असम्भव।


              कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'


   " गिरा अनयन नयन बिनु बानी "

37 comments:

  1. Replies
    1. सादर आभार आपका उत्साहवर्धन के लिए।
      सादर।

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  2. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका,आपकी प्रतिक्रिया से उत्साह वर्धन हुआ।
      सादर।

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  3. आपने बहुत मनोहारी दृश्य प्रस्तुत किया कविता के माध्यम से कुसुम जी..सुन्दर कृति..शुभकामनायें मेरी तरफ से..।।

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    1. बहुत बहुत सा स्नेह आभार आपका जिज्ञासा जी, उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सस्नेह।

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  4. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" (1980...सुरमई-सी तैरती मिहिकाएँ...) पर गुरुवार 17 दिसंबर 2020 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. बहुत बहुत आभार आपका मैं अवश्य उपस्थित रहूंगी मंच पर सादर।

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  5. अनुपम,अप्रतिम, अतिसुंदर रचना दी।
    प्रकृति के सौन्दर्य को मनोहारी शब्दों की माला में पिरोने की कला आपकी लेखनी की विशेषता है।
    सादर प्रणाम दी।

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    1. आप आये बहार आई! बहना रचना सार्थक हुई आपकी अमूल्य प्रतिक्रिया से,आपको पता है प्रकृति और छायावाद मेरी पहली पसंद है।
      ढेर सा स्नेह आभार।

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  6. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका पुरुषोत्तम जी, उत्साह वर्धन के लिए।

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका।
      सादर।

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  9. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 18-12-2020) को "बेटियाँ -पवन-ऋचाएँ हैं" (चर्चा अंक- 3919) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
    धन्यवाद.

    "मीना भारद्वाज"


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    1. बहुत बहुत आभार आपका मीना जी मैं चर्चा पर अवश्य उपस्थित रहूंगी।
      सस्नेह।

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  10. बेहतरीन रचना सखी

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    1. बहुत बहुत आभार आपका सखी।
      मन प्रसन्न हुआ आपकी प्रतिक्रिया से।
      सस्नेह।

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  11. प्रकृति के सौन्दर्य की बहुत ही मनोहर छटा बिखेर दी आपने मन आँगन में....
    वाह!!!
    अद्भुत अप्रतिम लाजवाब।

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    1. बहुत बहुत सा आभार आपका सुधा जी,आपकी उपस्थिति ही मेरी रचना का उपहार है ।
      सस्नेह।

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  12. वाह!लाजवाब सृजन दी काफ़ी बार पढ़ चुकी हूँ।
    हर बार बस वाह!
    सराहनीय शब्द चित्र।

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    1. बहुत बहुत सा स्नेह आभार बहना आपकी मोहक टिप्पणी से रचना मुखरित हुई।
      सस्नेह।

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  13. Replies
    1. आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ।
      सादर आभार आपका।

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  14. बहुत सुन्दर रचना

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका रचना सार्थक हुई।
      सादर।

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  15. Replies
    1. सस्नेह आभार बहना आप की प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिलता है।
      सस्नेह।

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  16. कश्मीर के अप्रतिम सौन्दर्य का सुंदर वर्णन !

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    1. मैं अभिभूत हूं ,सस्नेह आभार आपका।

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  17. Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका।
      सादर।

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  18. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।

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  19. मुग्ध करती सुन्दर रचना।

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  20. शब्दों का केनवास खड़ा कर दिया ... मोहक प्रकृति का नज़ारा ...

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