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Wednesday, 16 September 2020

सुन मनुज

 सुन मनुज


कदम जब रुकने लगे 

तो मन की बस आवाज सुन

गर तुझे बनाया विधाता ने

श्रेष्ठ कृति संसार में तो

कुछ सृजन करने होंगें 

तुझ को विश्व उत्थान में

बन अभियंता करने होंगें नव निर्माण

निज दायित्व को पहचान तू

कैद है गर भोर उजली

हरो तम बनो सूर्य

अपना तेज पहचानो

विघटन नही जोडना है तेरा काम

हीरे को तलाशना हो तो

कोयले से परहेज भला कैसे करोगे

आत्म ज्ञानी बनो आत्म केन्द्रित नही

पर अस्तित्व को जानो

अनेकांत का विशाल मार्ग पहचानो

जियो और जीने दो, 

मै ही सत्य हूं ये हठ है

हठ योग से मानवता का

विध्वंस निश्चित है

समता और संयम

दो सुंदर हथियार है

तेरे पास बस उपयोग कर

कदम रूकने से पहले

फिर चल पड़।।


 कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'


4 comments:

  1. मानवीय कर्मठता का आह्वान करता अत्यंत सुन्दर सृजन ।

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  2. हीरे को तलाशना हो तो
    कोयले से परहेज भला कैसे करोगे
    आत्म ज्ञानी बनो आत्म केन्द्रित नही
    समता और संयम रूपी हथियारों का उपयोग टरके प्रगति पथ पर अग्रसर होने की सीख देती बहुत ही लाजवाब अभिव्यक्ति....
    वाह!!!

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  3. हर मन की आवाज यही हो । सुंदर कृति ।

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