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Friday 14 June 2019

उजाले अंधेरे

कहीं कोरी उजली कहीं स्याह अधेंरों की दुनिया
कहीं आंचल पड़ता छोटा कहीं मुफ़लिसी में दुनिया।

कहीं है दामन में भरे चांद और सितारे
कहीं मय्यसर नही रातों को भी  उजाले ।

कहीं जिंदगी चमकती खिलखिलाती
कहीं टूटे ख्वाबों की चुभती किरचियां ।

कहीं हैं लगे हर ओर रौनक़ों के रंगीन मेले
कहीं ज़िंदगी बदरंग धुँआ-धुआँ ढ़ल रही ।

कहीं कोई चैन और सुकून से सो रहा
कहीं कोई नींद से बिछुड़ कर रो रहा ।

कहीं खनकते सिक्कों की है खनखन
कहीं कोई अपनी ही मय्यत ढो रहा ।

              कुसुम कोठारी।

11 comments:

  1. कहीं हैं लगे हर ओर रौनक़ों के रंगीन मेले
    कहीं ज़िंदगी बदरंग धुँआ-धुआँ ढ़ल रही ।
    बहुत खूब ...नमस्कार कुसुम जी

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    1. बहुत सा आभार कामिनी जी उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया आपकी।
      सस्नेह

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  2. बहुत खुब कहा आपने 'कहीं कोरी उजली कहीं स्याह अधेंरों की दुनिया'। सच में ऐसी ही है ये दुनिया। सादर नमन कुसुम जी। राजीव उपाध्याय

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    1. जी सादर आभार आपका प्रोत्साहित करती प्रतिक्रिया।
      ब्लॉग पर स्वागत है आपका।

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  3. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (15 -06-2019) को "पितृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ" (चर्चा अंक- 3367) पर भी होगी।

    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है

    ….
    अनीता सैनी

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    1. बहुत बहुत आभार आपका मेरी रचना को चर्चा शामिल करने के लिए।
      तहेदिल से शुक्रिया।
      सस्नेह।

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  4. कभी धूप तो कभी छांव हैं जिंदगी। बहुत सुंदर रचना कुसुम दी।

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  5. जिंदगी शायद यही है .... चप्पो भी है छाँव भी है ...
    अँधेरा उजाला दोनों ही अपनाना होता है ... बेहतरीन रचना ...

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  6. कहीं कोई चैन और सुकून से सो रहा
    कहीं कोई नींद से बिछुड़ कर रो रहा ।
    जीवन की विषमताओं को बहुत गहरे भावों में उकेरती खूबसूरत रचना कुसुम जी ।।

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  7. कहीं खनकते सिक्कों की है खनखन
    कहीं कोई अपनी ही मय्यत ढो रहा ।
    बहुत खूब प्रिय कुसुम बहन | जीवन के दो रंग हैं | हर जगह दिन रात . अपने पराये , अँधेरे उजाले का अंतर बना रहता है | भगवान् ने अपनी उंच नीच बनाई यानी कहीं पहाड़ कहीं मैदान बनाये तो इंसानों ने अमूर्त उंच नीच ईजाद कर दी -- कहीं जाति की कहीं धर्म की | सार्थक रचना के लिए हार्दिक शुभकामनायें |

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  8. कहीं जिंदगी चमकती खिलखिलाती
    कहीं टूटे ख्वाबों की चुभती किरचियां ।.. बेहद सुंदर और सार्थक रचना सखी 👌

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