हसरतें खियाबां
यूं ही होता जब बंद किताबों के पन्ने पलटते हैं
सफे यादों के ठहरे रूके फिर - फिर चलते हैं
गम और खुशी सभी के हिस्सा ए हयात होता है
कभी हंसाता है और कभी बेपनाह रूलाता है
सो जाती है रात जब, सिर्फ ख्वाब ही चलते हैं
हसरतेें खियाबां की मगर खिज़ा मे भटकते है।
कुसुम कोठारी ।
खियाबां =बगीचा
खिज़ा=पतझर या बैरौनक
यूं ही होता जब बंद किताबों के पन्ने पलटते हैं
सफे यादों के ठहरे रूके फिर - फिर चलते हैं
गम और खुशी सभी के हिस्सा ए हयात होता है
कभी हंसाता है और कभी बेपनाह रूलाता है
सो जाती है रात जब, सिर्फ ख्वाब ही चलते हैं
हसरतेें खियाबां की मगर खिज़ा मे भटकते है।
कुसुम कोठारी ।
खियाबां =बगीचा
खिज़ा=पतझर या बैरौनक
वाह!!! बहुत खूब सखी .... बहुत सुन्दर ग़ज़ल।
ReplyDeleteहर शेर कमाल
ग़ज़ल वही जो दिल में उतर जाये
लाख भूलना चाहो फिर भी याद आए।
वाहः वाहः बहुत खूब
ReplyDeleteबेहतरीन अशआर
वाह बेहतरीन बहुत सुंदर गजल 👌👌
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 09 सितम्बर 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
ReplyDeleteअद्भुत अस्सार.
ReplyDeleteवाह
आप की लेखनी कमाल है
वाह बहुत सुंंदर...गम और खुशी सभी के हिस्सा ए हयात होता है..इसी से सबको जूझना होता है...फिर ये हमारे ऊपर है कि कैसे इसे डील करें
ReplyDeleteगम और खुशी सभी के हिस्सा ए हयात होता है
ReplyDeleteकभी हंसाता है और कभी बेपनाह रूलाता है
लाजवाब गजल
वाह!!!
यूं ही होता जब बंद किताबों के पन्ने पलटते हैं
ReplyDeleteसफे यादों के ठहरे रूके फिर - फिर चलते हैं
.
बहुत ख़ूब... अति उत्तम दीदी, बेहद ख़ूबसूरत
छोटी सी रचना पर बहुत प्रभावी | कुसुम बहन आपका उर्दू में दखल बहुत सराहनीय है |सस्नेह |
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