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Monday 10 September 2018

प्रकृति के उपहार

लो आई नई भोर...

प्रकृति लिये खड़ी कितने उपहार
चाहो तो समेट लो अपनी झोली में
अंखियों की पलकों में
दिल की कोर में ,साँसों की सरगम में
देखो उषा की सुनहरी लाली
कितनी मन भावन ,
उगता सूरज ,ओस की शीतलता
पंक्षियों की चहक ,फूलों की महक
भर लो अंतर तक ,कलियों की चटक
कोयल की कुहूक मानो कानो में मिश्री घोलती ,
भंवरे की गुंजार ,नदियों की कल-कल,
सागर का प्रभंजन ,लहरों की प्रतिबद्धता
जो कर्म का पाठ पढाती बंधन में रह के भी ,
झरनों का राग,पहाड़ों की अचल दृढ़ता ,
सुरमई साँझ का लयबद्ध संगीत ,
निशा के दामन का अंधेरा कहता
 लो आई नई भोर ,
गगन में इठलाते मंयक की उजास भरती रोशनी ,
किरणों का चपलता से बिखरना ,
तारों की टिम - टिम ,
दूर धरती गगन का मिलना
बादलों की हवा में उडती डोलियाँ
बरसता सावन ,मेघों का मंडराना
तितलियों  की सुंदरता
और भी न जाने क्या क्या
जिनका कोई मूल्य नही चुकाना
पर जो अनमोल भी है अभिराम भी
             कुसुम कोठारी ।

8 comments:

  1. उगता सूरज ,ओस की शीतलता
    पंक्षियों की चहक ,फूलों की महक
    भर लो अंतर तक ,कलियों की चटक वाह बहुत ही सुन्दर रचना 👌👌

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  2. आपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 12 सितंबर 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!



    .

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  3. वाह बहुत खूब 👌👌👌
    बेहद शानदार रचना ...लाजवाब

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  4. जो कर्म का पाठ पढाती बंधन में रह के भी ,
    झरनों का राग,पहाड़ों की अचल दृढ़ता ,
    सुरमई साँझ का लयबद्ध संगीत ,
    निशा के दामन का अंधेरा कहता
    लो आई नई भोर ,
    बहुत सुन्दर ....
    वाह!!!!

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  5. प्रिय कुसुम बहन -- प्रकृति के उपहार को एक कवि दृष्टि से खूब निहारा है आपने | चित्रात्मकता में आप बेजोड़ हैं | आपके लेखन में नित -नित नये विषय प्रभावित करते है| दिन के सभी पहर रचना में समा गये | बहुत सुंदर रचना आपके मनमोहक अंदाज में | हार्दिक बधाई | सस्नेह --

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  6. वाह ! प्राकृतिक सौंदर्य की खूबसूरत प्रस्तुति ! बहुत सुंदर आदरणीया । बहुत खूब ।

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  7. नयी भोर का आगमन कितना कुछ प्राकृति में कर जाता है ... मन मयूर को महका जाता है ...
    सुंदर रचना ...

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