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Tuesday 19 June 2018

खुशियों के अंकुर

खुशियों के अंकुर

खुशियों के जो बीज मिले
भर लूं उन को बस मुठ्ठी मे
उन्हें छींट दूं आगंन मे
आंख के आंसू जब
बारिश बन कर बरसेंगे
नव खुशियों के अंकुर फूटेगें
प्यार की कलियाँ चटकेगी
रंग बिरंगे फूल खिलेंगे
लहरायेगी हरियाली
ना रहेगा कोई गम
आंगन भर जायेगा मेरा
खुशियों से बस खुशियों से ।

       कुसुम कोठारी।

8 comments:

  1. वाह दीदी जी
    बेहद आनन्दायी रचना
    मन में भी खुशीयो का अंकुर फूट गया
    अतिसुंदर 👌

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    1. स्नेह आभार आंचल आपका।

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  2. आप की रचना का जबाब नहीं 👌👌
    बहुत ही सुन्दर

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    1. जी तहेदिल से शुक्रिया। ब्लॉग पर आपकी उपस्थिति उत्साह वर्धक ।

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  3. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक २५ जून २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  4. वाह!!कुसुम जी ,क्या बात है ,बहुत ही उम्दा ।

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