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Sunday 17 June 2018

सीप और मोती

सीप और मोती

हृदय मे लिये बैठी थी
एक आस का मोती
सींचा अपने वजूद से,
दिन रात हिफाजत की
सागर की गहराईंयो मे
जहाँ की नजरो से दूर
हल्के हल्केे लहरों के
हिण्डोले मे झूलाती
सांसो की लय पर
मधुरम लोरी सुनाती
पोषती रही सीप
अपने हृदी को प्यार से
मोती धीरे धीरे
शैशव से निकल
किशोर होता गया
सीप से अमृत पान
करता रहा तृप्त भाव से
अब यौवन मुखरित था
सौन्दर्य चरम पर था
आभा ऐसी की जैसे
दूध मे चंदन दिया घोल
एक दिन सीप
एक खोजी के हाथ मे
कुनमुना रही थी
अपने और अपने अंदर के
अपूर्व को बचाने
पर हार गई उसे
छेदन भेदन की पीडा मिली
साथ छूटा प्रिय हृदी का
मोती खुश था बहुत खुश
जैसे कैद से आजाद
जाने किस उच्चतम
शीर्ष की शोभा बनेगा
उस के रूप पर
लोग होंगे मोहित
प्रशंसा मिलेगी
हर देखने वाले से ,
उधर सीपी बिखरी पड़ी थी
दो टुकड़ों मे
कराहती सी रेत पर असंज्ञ सी
अपना सब लुटा कर
वेदना और भी बढ़ गई
जब जाते जाते
मोती ने एक बार भी
उसको देखा तक नही
बस अपने अभिमान मे
फूला चला गया
सीप रो भी नही पाई
मोती के कारण जान गमाई
कभी इसी मोती के कारण
दूसरी सीपियों से
खुद को श्रेष्ठ मान लिया
हाय क्यूं मैने
स्वाति का पान किया।

         कुसुम कोठारी।

4 comments:

  1. अद्भुत... अनुपमेय रचना... वाह

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    1. आपकी त्वरित प्रतिक्रिया और सराहना के लीये सादर आभार अमित जी।

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  2. अप्रतिम, अति सुंदर भावों से सजी कृति👌👌👌

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