Followers

Saturday 25 February 2023

भिन्नता


 भिन्नता 


अपनी अपनी सोच अनूठी

अपनी खुशियांँ अपना डर।


एक पात लो टूट चला है

तरु की उन्नत शाखा से

एक पात इतराता ऊपर

झाँक रहा है धाका से

छप्पन भोगों पर इठलाती 

पत्तल भाग्य प्रशंसा कर।।


व्यंजन बस रस की है बातें

स्वाद भूख में होता है

एक थाल को दूर हटाता

इक रोटी को रोता है

पेट भरा तो कभी पखेरू 

दृष्टि न डाले दाने पर।।


समय समय पर मूल्य सभी का

कहीं अस्त्र लघु सुई बड़ी

प्राण रहे तन तब धन प्यारा

सिर्फ देह की किसे पड़ी

सदा कहाँ होता है सावन

घूम-घूम आता पतझर।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

12 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज रविवार (26-02-2023) को   "फिर से नवल निखार भरो"  (चर्चा-अंक 4643)   पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी हृदय से आभार आपका आदरणीय चर्चा मंच पर रचना को शामिल करने के लिए ।
      सादर।

      Delete
  2. Replies
    1. जी हृदय से आभार आपका आदरणीय।

      Delete
  3. लाजबाव अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
    Replies
    1. सस्नेह आभार आपका भारती जी।

      Delete
  4. सुंदर रचना।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी हृदय से आभार आपका रूपा जी, ब्लॉग पर सदा स्वागत है आपका।

      Delete
  5. सुंदर अभिव्यक्ति जी ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी हृदय से आभार आपका आदरणीय।

      Delete
  6. बहुत सुंदर।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका ज्योति बहन।
      सस्नेह।

      Delete