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Monday 1 November 2021

मन हिरणी


 मन हिरणी


हृदय मरुस्थल मृगतृष्णा सी

भटके मन की हिरणी

सूखी नदिया तीर पड़ी ज्यों

ठूँठ काठ की तरणी।।


कब तक राह निहारे किसकी

सूरज डूबा जाता

काया झँझर मन झंझावात,

हाथ कभी क्या आता

अंतर दहकन दिखा न पाए

कृशानु तन की अरणी।।


रेशम धागा उलझ रखा है,

गाँठ पड़ी है पक्की

भँवर याद के चक्कर काटे  

जैसे चलती चक्की 

जाने वाले जब लौटेंगे 

तभी रुकेगी दरणी।‌।


सुधि वन की मृदु कोंपल कच्ची

पोध सँभाल रखी है

सूनी गीली साँझ में पीर 

एक घनिष्ठ सखी है

दिन प्रात और रातें बीती

वहीं रुकी अवतरणी ।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

26 comments:

  1. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका मनोज जी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई सादर।

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  2. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय, आपकी उपस्थिति सदा उत्साहवर्धन करती है।
      सादर।

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  3. वाह!बहुत बहुत ही सुंदर नवगीत आदरणीय कुसुम दी जी।
    शब्द शब्द हृदय को स्पर्श करता।
    सराहनीय भाव।
    सादर प्रणाम

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    1. बहुत बहुत आभार आपका प्रिय अनिता आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से लेखन सदा उर्जावान होता है।
      सस्नेह।

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  4. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (2-11-21) को "रहे साथ में शारदे, गौरी और गणेश" (चर्चा अंक 4235) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
    --
    कामिनी सिन्हा

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    1. बहुत बहुत आभार आपका कामिनी जी , चर्चा मंच पर रचना को शामिल करने के लिए।
      चर्चा मंच पर आना मेरे लिए सदा गौरव का विषय है।
      सादर सस्नेह।

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  5. कोमल भावनाओं से ओतप्रोत सुंदर रचना

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका अनिता जी ।
      आपकी टिप्पणी से उत्साह वर्धन हुआ।
      सस्नेह।

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  6. भाव विभोर करती उत्कृष्ट रचना बहुत बहुत बधाई कुसुम जी 💐💐।

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    1. रचना आपको पसंद आई मेरा सौभाग्य है जिज्ञासा जी आप जैसे प्रबुद्ध पाठकों से ही लेखन निरंतर जारी रहता है।
      सस्नेह।

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  7. बहुत बहुत सुन्दर

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    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका आलोक जी, उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए।
      सादर।

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  8. बहुत ही सुन्दर और सार्थक रचना प्रिय कुसुम बहन। आपकी लेखनी से निसृत भावों से भरा सृजन अनमोल है। भाव पक्ष और कला पक्ष दोनों मज़बूत हैं। हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई सुन्दर रचना के लिए।

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    1. सस्नेह आभार आपका रेणु बहन आपकी विस्तृत स्नेहिल प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      और कलम में नये जोश का संचार हुआ।
      सुंदर सार्थक सकारात्मक ऊर्जा के लिए हृदय से आभार।
      सस्नेह।

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  9. दीप पर्व पर आप को सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई। ज्योति पर्व आपके लिए शुभता और खुशियां लेकर आए यही कामना करती हूं ❤️❤️🌷🌷

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    1. आपको भी सभी पर्वों पर सह परिवार हार्दिक शुभकामनाएं।

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  10. बहुत ही सुंदर😍💓

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    1. बहुत बहुत आभार आपका मनीषा जी आपकी प्रतिक्रिया से रचना प्रवाहित हुई।
      सस्नेह।

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  11. बहुत बहुत बहुत सुंदर पंक्‍त‍ियां कुसुम जी, आप इतना गहरा ल‍िख देती हैं क‍ि न‍िशब्‍द हो जाते हैं हम "कब तक राह निहारे किसकी

    सूरज डूबा जाता

    काया झँझर मन झंझावात,

    हाथ कभी क्या आता

    अंतर दहकन दिखा न पाए

    कृशानु तन की अरणी।।" बहुत ही सुंदर

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    1. मैं आपकी टिप्पणी से सदा अभिभूत होती हूं अलकनंदा जी आप रचनाकार को एक उत्कृष्ट सा एहसास करवाती हैं।
      आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार।
      सस्नेह।

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  12. मर्मभेदी अभिव्यक्ति

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    1. जी सादर आभार आपका जितेन्द्र जी, उत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया ।
      सादर।

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  13. कमाल का सृजन कुसुम जी!
    एक से बढ़कर एक रचनाएं आपके ब्लॉग से बाहर निकलने का मन नहीं करता...
    काश रोज का रोज आपकी पोस्ट पाती।
    माँ सरस्वती यूँ ही आप पर हमेशा अपना आशीर्वाद बनाए रखे।

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    1. मोहक मन को आनंदित करती प्रतिक्रिया सुधा जी।
      आपकी टिप्पणी सदा लेखनी को उर्जा प्रदान करती है।
      सस्नेह।

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