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Monday 26 April 2021

किरणों का क्रंदन।


 किरणों का क्रदंन


तारों की चुनरी अब सिमटी

बीती रात सुहानी सी।

कलरव से नीरव सब टूटा

जुगनू द्युति खिसियानी सी।


ओढ़ा रेशम का पट सुंदर

सुख सपने में खोई थी

श्यामल खटिया चांदी बिछती

आलस बांधे सोई थी

चंचल किरणों का क्रदंन सुन

व्याकुल भोर पुरानी सी।।


प्राची मुख पर लाली उतरी

नीलाम्बर नीलम पहने

ओस कणों से मुख धोकर के

पौध पहनते हैं गहने 

चुगरमुगर कर चिड़िया चहकी

करती है अगवानी सी।।


वृक्ष विवर में घुग्घू सोते

 बातें जैसे ज्ञानी हो

दिन सोने में बीता फिर भी

साधु बने बकध्यानी हो

डींगें मारे ऐसे जैसे

कहते झूठ कहानी सी।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

27 comments:

  1. वाह! बहुत सुंदर।

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    1. जी सादर आभार आपका, उत्साहवर्धन हुआ।
      सादर।

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  2. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका शिवम् जी।
      सादर।

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  3. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (२७-०४-२०२१) को 'चुप्पियां दरवाजा बंद कर रहीं '(चर्चा अंक-४०५०) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. बहुत बहुत आभार आपका चर्चा में स्थान देने के लिए।
      चर्चा मंच पर उपस्थित रहूंगी।
      सादर।

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  4. आपकी काव्य-प्रतिभा का क्या कहना कुसुम जी। प्रत्येक कविता अद्वितीय होती है। एक एक शब्द आनंद से भर देता है।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका जितेंद्र जी आपकी मोहक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई, लेखन को नया संबल मिला ।
      सादर।

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  5. बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति 👌

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    1. बहुत बहुत आभार आपका सखी।
      उत्साहवर्धन हुआ।
      सस्नेह।

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  6. दिन सोने में बीता फिर भी

    साधु बने बकध्यानी हो

    डींगें मारे ऐसे जैसे

    कहते झूठ कहानी सी।।

    बहुत खूब,यही दौर है इन दिनों ,सादर नमन कुसुम जी

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    1. आपकी सुंदर प्रतिक्रिया से सदा लेखन को नव उर्जा मिलती है कामिनी जी।
      बहुत बहुत आभार आपका।
      सस्नेह।

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  7. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका।
      सादर।

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  8. बहुत सुंदर भावों से सजी सुंदर कविता ।

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    1. हृदय तल से आभार जिज्ञासा जी।
      आपकी टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ।
      सस्नेह।

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  9. बहुत सुन्दर और गहरी लगी आपकी रचना
    आभार

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    1. रचना पसंद आई लेखन सार्थक हुआ।
      बहुत बहुत आभार आपका।
      ब्लाग पर सदा स्वागत है आपका।
      सादर।

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  10. ओढ़ा रेशम का पट सुंदर
    सुख सपने में खोई थी
    श्यामल खटिया चांदी बिछती
    आलस बांधे सोई थी
    चंचल किरणों का क्रदंन सुन
    व्याकुल भोर पुरानी सी।।
    वाह!!!
    बहुत ही खूबसूरत बिम्बों से सजी मनमोहक लाजवाब कृति।

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    1. सस्नेह आभार आपका सुधा जी।
      आपकी टिप्पणी मेरे लेखन लिए सदा उर्जा काम करती है।
      सुंदर व्याख्यात्मक टिप्पणी के लिए हृदय से आभार।
      सस्नेह।

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  11. काव्य की सुरीली रस धार बहती है जैसे...
    बहुत सुन्दर रचना है ...

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    1. बहुत बहुत आभार आपका नासवा जी,आपकी सुंदर प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सादर।

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  12. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
    सादर।

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  13. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
    सादर।

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  14. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ३१ दिसंबर २०२१ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  15. शुभकामनाएं..
    सादर नमन

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  16. प्राची मुख पर लाली उतरी

    नीलाम्बर नीलम पहने

    ओस कणों से मुख धोकर के

    पौध पहनते हैं गहने

    चुगरमुगर कर चिड़िया चहकी

    करती है अगवानी सी।।

    प्रकृति के सौंदर्य को अद्भुत शब्द दिए हैं । सुंदर सृजन

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