Monday, 17 August 2020

समय औचक कोड़ा

 समय औचक कोड़ा


गूंज स्वरों की मौन हुई जब

पाहन हुवा धड़कता तन।

मानस से उद्गार गये तो

चमन बना ज्यों उजड़ा वन।


नित नव सरगम रचता अंतस

हर इक सुर महका महका।

हिया सांरगी मौन हुई तो

गीत बने बहका बहका।

कैसे कोई तान छेड़ दे

फूट रहा हो जब क्रन्दन।।


मन की धुनकी धुनके थम थम

तान तार में सुर अटका।

टूट गया जो घिसते घिसते

बुझता अंगारा चटका।

कौन करेगा बातें कल की

आज अभी कर लो वंदन।।


समय दासता करता किसकी

औचक ही कोड़ा लगता। 

सिर ताने चलने वाला भी

ओधे मुंह गिरा करता।

मौका रहते साज साध लें

गीत महकते बन उपवन।।


कुसुम कोठारी "प्रज्ञा"

12 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (19-08-2020) को    "हिन्दी में भावहीन अंग्रेजी शब्द"  (चर्चा अंक-3798)     पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --  
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  
    --

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    1. सादर आभार।
      मैं मंच पर उपस्थित रहूंगी।
      सादर।

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  2. बहुत सुंदर रचना, कुसुम दी।

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    1. बहुत बहुत आभार ज्योति बहन।

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  3. अद्भुत अद्भुत सृजन सखी

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    1. सस्नेह आभार आपका सखी।

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  4. वाह !! अद्भुत !! अत्यंत सुन्दर सृजन ।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका मीना जी।

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  5. Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
      ब्लाग पर सदा स्वागत है आपका।

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  6. समय ... सही है बिलकुल ... सब नतमस्तक समय के आगे ...
    प्रभावी सुन्दर रचना ...

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