Sunday, 16 August 2020

बस एक मुठ्ठी आसमां

 बस एक मुठ्ठी आसमां


आकर हाथों की हद में सितारे छूट जाते हैं

हमेशा ख़्वाब रातों के सुबह में टूट जाते हैं। 


मंजर खूब लुभाते हैं, वादियों के मगर,

छूटते पटाखों से भरम बस टूट जाते हैं । 


चाहिए आसमां बस एक मुठ्ठी भर फ़कत,

पास आते से नसीब बस रूठ जाते हैं । 


सदा तो देते रहे आम औ ख़ास को मगर,

सदाक़त के नाम पर कोरा रोना रुलाते हैं।


तपती दुपहरी में पसीना सींच कर अपना,

रातों को खाली पेट बस सपने सजाते हैं।

            

           कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'।

12 comments:

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    1. सादर आभार आपका आदरणीय।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका।
      रचना सार्थक हुई।

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  3. सादर नमस्कार ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (18 -8 -2020 ) को "बस एक मुठ्ठी आसमां "(चर्चा अंक-3797) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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    कामिनी सिन्हा

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    1. बहुत बहुत आभार आपका कामिनी जी मैं मंच पर अवश्य उपस्थित रहूंगी।
      सस्नेह।

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  4. बहुत सुंदर गजल सखी

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  5. मंजर खूब लुभाते हैं, वादियों के मगर,
    छूटते पटाखों से भरम बस टूट जाते हैं ।
    बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कुसुम जी ! आपकी लेखनी को नमन ! हर विधा में सिद्धहस्त हैं आप !

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    1. आपका असीम स्नेह मेरी लेखनी को उर्जा प्रदान करता है मीना जी सदा स्नेह की आकांक्षी।
      सस्नेह।

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  6. बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल सखी।

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    1. बहुत बहुत आभार सखी।
      सस्नेह।

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