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Friday 29 November 2019

थोड़ा शहर गांव में

जब पेड़ों पर कोयल काली
कुहुक-कुहुक कर गाती थी,
डाली-डाली डोल पपीहा
पी कहां  की राग सुनाता था,
घनघोर  घटा घिर आती थी
और मोर नाचने आते थे ,
जब गीता श्यामा की शादी में
सारा गांव नाचता गाता था ,
कहीं नन्हे के जन्मोत्सव पर
ढोल बधाई  बजती थी  ,
खुशियां  सांझे की होती थी
गम में हर आंख भी रोती थी,
कहां गया वो सादा जीवन
कहां गये वो सरल स्वभाव ,
सब "शहरों" की और भागते
 नींद  ओर चैन गंवाते ,
या वापस आते समय
थोडा शहर साथ ले आते ,
सब भूली बिसरी बातें हैं
और यादों के उलझे धागे हैं।

           कुसुम कोठारी ।

11 comments:

  1. खुशियां सांझे की होती थी
    गम में हर आंख भी रोती थी,
    कहां गया वो सादा जीवन
    कहां गये वो सरल स्वभाव ,
    बहुत कुछ कहती...अपनेपन की महक में डूबी पंक्तियां हृदय को छू गई । बहुत उम्दा भावाभिव्यक्ति कुसुम जी।

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  2. गाँव की यादों की हूक जगाती भावपूर्ण रचना, प्रिय कुसुम बहन | अब गांवों में भी वो बात नहीं रही पर दो ढाई दशक पहले बहुत सौहार्द और भाईचारे का माहौल था | सादगी और सरलता से जी रहे गाँव के लोग भी अब शहरी चकाचौंध में डूबे शहर की ओर ही दौड़ रहे है | इन उलझी सी यादों में जीना अब भी अच्छा लगता है |सस्नेह -- |

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  3. बेहतरीन लेखन

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  4. बेहतरीन लेखन

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  5. जी नमस्ते,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (०१-१२ -२०१९ ) को "जानवर तो मूक होता है" (चर्चा अंक ३५३६) पर भी होगी।
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।

    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

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  6. बहुत सुंदर रचना कुसुम जी ,सच ,अब गाँव का जीवन तो भूली बिसरी यादें बनकर रह गई हैं ,आज बहुत दिनों बाद मेरा ब्लॉग पर आना हुआ ,सादर नमस्कार आपको

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  7. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    २ नवंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।,

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  8. सुन्दर प्रस्तुति

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  9. शहर से लौटते हुए कुछ अंश शहर का ले के आते हैं ... ये तो बिलकुल सच है ...
    कुछ निशानी होती है जो जाने अनजाने आ ही जाती है ... सुन्दर अभिव्यक्ति ...

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  10. वाह!कुसुम जी ,बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति !

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  11. सब "शहरों" की और भागते
    नींद ओर चैन गंवाते ,
    या वापस आते समय
    थोडा शहर साथ ले आते ,
    सब भूली बिसरी बातें हैं
    और यादों के उलझे धागे हैं। सही कहा सखी, बेहतरीन रचना👌👌

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