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Monday 28 October 2019

मधुरागी

मधुरागी

सुंदर सौरभ यूं
बिखरा मलय गिरी से,
उदित होने लगा
बाल पंतग इठलाके,
चल पड़ कर्तव्य पथ
का राही अनुरागी
प्रकृति सज उठी है
ले नये शृंगार मधुरागी
पुष्प सुरभित
दिशाएँ रंग भरी
क्षितिज व्याकुल
धरा अधीर
किरणों की रेशमी डोर
थामे पादप हंसे
पंछी विहंसे
विहंगम कमल दल
शोभित सर हृदी
भोर सुहानी आई
मन भाई।

    कुसुम कोठारी ।

4 comments:

  1. बहुत सुंदर रचना,कुसुम दी।

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  2. चल पड़ कर्तव्य पथ पर राही अनुरागी। बहुत सुंदर संकलन कुसुम जी।बेहतरीन

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  3. किरणों की रेशमी डोर
    थामे पादप हंसे
    पंछी विहंसे
    विहंगम कमल दल
    शोभित सर हृदी
    भोर सुहानी आई
    बहुत खूब प्रिय कुसुम बहन ! प्रकृति का विहंगम चित्र संजोती रचना के लिए हार्दिक शुभकामनायें |

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  4. वाहहह बेहद खूबसूरत रचना सखी 👌

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