Thursday, 16 March 2023

भोर से दोपहर तक

भोर से दोपहर तक

उर्मियों से कंठ लग कर
ओस झट से झिलमिलाई
देख कलिका एक सुंदर 
तितलियाँ भी किलकिलाई।।

भोर की लाली उतर कर
मेदिनी के गात डोली
हर दिशा से आ रही है
पाखियों की धीर बोली
सौम्य सुरभित वात बहकर
पत्तियों से गिलबिलाई।।

गोपियों ने गीत गाए
अर्कजा का कूल प्यारा
श्याम वर्णी श्याम सुंदर  
राधिका का रूप न्यारा
प्रीत बैठी फूँक मुरली
रागिनी भी खिलखिलाई।।

भानु का रथ दौड़ता सा
नील नभ पर डोलता है
बादलों के पार बैठा
हेम कोई तोलता है
अब चली सखियाँ सभी मिल
धूप खुलकर चिलचिलाई।।

कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
 


2 comments:

  1. सकारात्मक भाव जगाती उत्तम रचना।

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  2. मोह निद्रा त्याग के तू

    छोड़ दे आलस्य मानव

    कर्म निष्ठा दत्तचित बन

    श्रेष्ठ तू हैं विश्व आनव

    उद्यमी अनुभूतियाँ ही

    हार में भी जीत देती।।
    वाह!!!
    बहुत ही प्रेरक लाजवाब सृजन ।

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