Saturday, 11 March 2023

ऋतु मदमाती


 ऋतु मदमाती 


सखी देखलो ऋतु मदमाती

डाल-डाल पाखी चहके।

काल ठहर कर रुकता दिखता

फूलों के उपवन लहके।


मुकुल ओढ़ नव लतिका डोली

मंद गंध ले पवन बहे

सरसिज से सरसी सरसाई 

मधुप मगन मदमस्त रहे

लो कानन में कोयल कूकी

द्रुम दल पात-पात बहके।।


मंजरियाँ मदमाती है ज्यों

मद पी कर बौराई है

केसर उड़ता वात झोंक में

विलस रही अमराई है

कण-कण सुरभित गंध भरी है

वसुधा का आँचल महके।।


झरने मंथर कल-कल बहते

मंद चाल सरिता भरती

निर्मल वो आकाश नील सा

धानी चूनर सी धरती

बासंती का नेह झलकता

टेसू से बन-बन दहके।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

6 comments:

  1. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 13 मार्च 2023 को साझा की गयी है
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. सखी देखो ऋतु मदमाती
    डाल- डाल पाखी चहके
    काल ठहर कर रूकता दिखता
    फूलों के उपवन हल्के
    बहुत सुन्दर सखी .
    ऋतु मदमाती सबके दिल को भाती

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  3. बहुत सुंदर रचना।

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  4. मंजरियाँ मदमाती है ज्यों

    मद पी कर बौराई है

    केसर उड़ता वात झोंक में

    विलस रही अमराई है

    कण-कण सुरभित गंध भरी है

    वसुधा का आँचल महके।।
    वसंत की अनुपम छटा उकेर दी लेखनी ने...
    बहुत ही मनोरम ..लाजवाब सृजन।

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  5. वाह!कुसुम जी ,बेहतरीन सृजन ।

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  6. शब्द सौंदर्य के साथ साथ भावों का सुंदर संप्रेषण। प्रकृति पर अद्भुत लेखन।

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