Thursday, 22 September 2022

अबूझ प्रकृति


 अबूझ प्रकृति


है अबूझी सी कथाएं

खेल कौतुक से भरा

ये कलाकृति काल की या

सूत्र धारी है परा।।


पाकशाला देव गण की

कौनसी खिचड़ी पके

धुंधरी हर इक दिशा है

ओट से सूरज तके

धुंध का अम्बार भारी

व्योम से पाला झरा।।


ये प्रकृति सौ रूप धरती

कब अशुचि कब मोहिनी

मौसमी बदलाव इतने

रूक्ष कब हो सोहिनी

कौन रचता खेल ऐसे

है अचंभे से भरा।। 


दृश्य मधुरिम से उकेरे

पर्वतों के छोर में

भानु लुकता फिर रहा है

शून्य रेखा खोर में

कोहरा वात्सल्य बिखरा

आज आँचल में धरा।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

9 comments:

  1. सुंदर प्रस्तुति । दिल्ली की बारिश भी कुछ ऐसा ही दृश्य उपस्थित कर रही ।

    ReplyDelete
  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २३ सितंबर २०२२ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    ReplyDelete
  3. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार 23 सितंबर 2022 को 'तेरे कल्याणकारी स्पर्श में समा जाती है हर पीड़ा' ( चर्चा अंक 4561) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

    ReplyDelete
  4. ये प्रकृति सौ रूप धरती

    कब अशुचि कब मोहिनी

    मौसमी बदलाव इतने

    रूक्ष कब हो सोहिनी

    कौन रचता खेल ऐसे

    है अचंभे से भरा।। ...शानदार है प्रकृति और ईश्‍वर की रचना ..बहुत खूब कुसुम जी

    ReplyDelete

  5. सुन्दर तत्सम शब्द चित्रों का छंदबद्ध संकलन बारम्बार पठनीय बन पड़ा है |
    मनोरम एवं गहन चिंतन

    ReplyDelete
  6. बेहतरीन व सूक्ष्म दृष्टि

    ReplyDelete
  7. बहुत सुंदर रचना

    ReplyDelete

  8. दृश्य मधुरिम से उकेरे

    पर्वतों के छोर में

    भानु लुकता फिर रहा है

    शून्य रेखा खोर में

    कोहरा वात्सल्य बिखरा

    आज आँचल में धरा।।.. वाह !
    सुंदर छायाचित्र जैसी रचना ।

    ReplyDelete