Saturday, 3 September 2022

प्रकृति के रूप


 गीतिका/212 1212 1212 1212.


प्रकृति के रूप


आसमान अब झुका धरा भरी उमंग से।

लो उठी अहा लहर मचल रही  तरंग से।।


शुचि रजत बिछा हुआ यहाँ वहाँ सभी दिशा।

चाँदनी लगे टहल-टहल रही  समंग से।।


वो किरण लुभा रही चढ़ी गुबंद पर वहाँ।

दौड़ती समीर है सवार हो पमंग से।।


रूप है अनूप चारु रम्य है निसर्ग भी ।

दृश्य ज्यों अतुल दिखा रही नटी तमंग से।।


जब त्रिविधि हवा चले इलय मचल-मचल उठे।

और कुछ विशाल वृक्ष झूमते मतंग से।


वो तुषार यूँ 'कुसुम' पिघल-पिघल चले वहाँ।

स्रोत बन सुरम्य अब उतर रहे उतंग से।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

इलय/गतिहीन

23 comments:

  1. अहा ! प्रकृति का ऐसा अनूठा रूप
    कमाल की गीतिका !
    मनोहर ...लाजवाब...
    वाह!!!

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    1. हृदय से आभार आपका सुधा जी आपकी रसभीनी प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ।
      सस्नेह।

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  2. वाह! इतना सुंदर गीत मन को सराबोर कर गया।

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    1. हृदय से आभार आपका विश्व मोहन जी , अपको रचना अच्छी लगी।
      लेखन को नव ऊर्जा मिली ।
      सादर।

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  3. कुसुम जी, सच्चे अर्थों में आप पन्त जी की शिष्या हैं.
    शुद्ध प्रांजल भाषा में प्रकृति-चित्रण की आप अनुपम चितेरी हैं.

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    1. हृदय से आभार आपका।
      आपकी टिप्पणी से मन अभिभूत हुआ आदरणीय
      अतिश्योक्ति ही सही पर पंतजी जैसे महान रचनाकार सा लेश मात्र भी लिख लूं तो लेखनी धन्य हुई समझूँ।
      पुनः आभार सादर।

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  4. आपकी लिखी रचना सोमवार 5 सितम्बर ,2022 को
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

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    1. हृदय से आभार आपका संगीता जी पाँच लिंक में रचना का आना सदा सुखद अनुभव है।
      सादर।

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  5. बहुत बढ़िया प्रकृति दर्शन करवाया आपने, कुसुम दी।

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    1. हृदय से आभार आपका ज्योति बहन।
      आपकी टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ।
      सस्नेह।

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  6. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार(०५-०९ -२०२२ ) को 'शिक्षा का उत्थान'(चर्चा अंक-४५४३) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. हृदय से आभार आपका अनिता जी।
      चर्चा मंच पर रचना को देखना सदैव सुखद अनुभव है।
      सादर सस्नेह।

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  7. आहा दी...शब्द नही मिल रहे सराहना के लिए।
    आपके समृद्ध शब्द कोश से रूनझुन पाजेब पहन.कर इतराते बलखाते भाव के क्या कहने वाह्ह... अद्भुत शिल्प अति मनमोहक रचना दी।

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    1. हृदय से आभार आपका श्वेता।
      इतनी प्यारी टिप्पणी जो स्वयं भी अपने आप में काव्य है , जो उस पाजेब के घुंघरूओं को छेड़ कर तान दे गई।
      सस्नेह।


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    1. हृदय से आभार आपका रंजू जी, सदा ब्लाग पर स्वागत है आपका।
      सादर सस्नेह।

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  9. छायावादी काव्य का जो स्तुत्य अनुशरण करते हैं,उनमें से एक सुदक्ष रचनाकार आप भी हो प्रिय कुसुम बहन।अत्यंत सुन्दर रचना के लिए बधाई और शुभकामनाएं 🙏🌺🌺

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  10. लाजवाब प्रकृति चित्रण। आदरणीय गोपेश जी ने बिल्कुल सही कहा। बधाई और आभार।

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    1. हृदय से आभार आपका आपकी बेजोड़ कलम से ये सराहना एक अमूल्य उपहार है मेरे लिए ।
      सादर।

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  11. बहुत ही सुन्दर रचना सखी प्रकृति का अद्भुत चित्रण

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    1. हृदय से आभार आपका सखी।
      उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सस्नेह।

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  12. आपकी सृजन साधना अद्भुत है । शब्द शिल्प का कौशल मन्त्रमुग्ध करता है । अत्यंत सुन्दर सृजन ।

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    1. हृदय से आभार आपका मीना जी आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से हृदय आनंद से भर गया।
      आप सभी का साथ ही मेरा हौंसला है।
      सस्नेह।

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