Tuesday, 30 August 2022

उधारी,मनहनण घनाक्षरी


 मनहरण घनाक्षरी छंद


उधारी


उधारी से काम चले, फिर काम कौन करे।

छक-छक  माल खूब, दूसरो के खाईये।।


सबसे बड़ा है पैसा, आज के इस युग में।

काम धाम छोड़कर, अर्थ गुण गाईये।।


खूब किया ठाठ यहाँ, मुफ्त का ही माल लूटा,

खाली है तिजोरी भैया, अब घर जाईये।।


निज का बचाके रखें, गहरा छुपाके रखें।

व्यर्थ का चंदन घिस, भाल पे लगाईये।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

8 comments:

  1. "व्यर्थ का चंदन घिस, भाल पर लगाईये।"-बहुत खूब।

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    1. जी हृदय से आभार आपका आदरणीय।
      रचना समर्थ हुई।
      सादर।

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  2. बहुत खूब व्यंग्य लिखा है

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    1. हृदय से आभार आपका आदरणीया लेखन सार्थक हुआ।
      सस्नेह।

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका।
      लेखनी को नव उर्जा मिली।
      सादर।

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  4. सबसे बड़ा है पैसा, आज के इस युग में।

    काम धाम छोड़कर, अर्थ गुण गाईये।।

    बहुत सटीक एवं सार्थक व्यंग
    वाह!!!

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  5. व्यंग्य को समर्थन देती प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ सुधा जी।
    हृदय से आभार आपका।
    सस्नेह।

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