मनहरण घनाक्षरी छंद
उधारी
उधारी से काम चले, फिर काम कौन करे।
छक-छक माल खूब, दूसरो के खाईये।।
सबसे बड़ा है पैसा, आज के इस युग में।
काम धाम छोड़कर, अर्थ गुण गाईये।।
खूब किया ठाठ यहाँ, मुफ्त का ही माल लूटा,
खाली है तिजोरी भैया, अब घर जाईये।।
निज का बचाके रखें, गहरा छुपाके रखें।
व्यर्थ का चंदन घिस, भाल पे लगाईये।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'