Tuesday, 30 August 2022

उधारी,मनहनण घनाक्षरी


 मनहरण घनाक्षरी छंद


उधारी


उधारी से काम चले, फिर काम कौन करे।

छक-छक  माल खूब, दूसरो के खाईये।।


सबसे बड़ा है पैसा, आज के इस युग में।

काम धाम छोड़कर, अर्थ गुण गाईये।।


खूब किया ठाठ यहाँ, मुफ्त का ही माल लूटा,

खाली है तिजोरी भैया, अब घर जाईये।।


निज का बचाके रखें, गहरा छुपाके रखें।

व्यर्थ का चंदन घिस, भाल पे लगाईये।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Wednesday, 24 August 2022

सामायिक चिंतन


 गीतिका/2122 2122 2122 212.


सामायिक चिंतन


नीर भी बिकने लगा है आज के इस काल में।

हर मनुज फँसता रहा इस मुग्ध माया जाल में।।


अब मिलावट वस्तुओं में बाढ़ सी बढ़ती रही।

कंकरों के जात की भी करकरी है दाल में।।


आपचारी बन रहा मानव अनैतिक भी हुआ। 

दोष अब दिखता नहीं अपनी किसी भी चाल में।


छाछ को अब कौन दे सम्मान इस जग में कहो।

स्वाद सबको मुख्य है मानस फँसा है माल में।


आपदा के योग पर संवेदनाएं वोट की।

दु:ख की तो संकुचन दिखती नहीं इक भाल में।।


मानकों के नाम पर बस छल दिखावे शेष हैं।

बाज आँखे तो टिकी रहती सदा ही खाल में।


बात किस-किस की कहे मुख से 'कुसुम' अपने भला।

भांग तो अब मिल चुकी है आचरण के ताल में।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Friday, 19 August 2022

मैं का बोलबाला


 मैं का बोलबाला 


तम की कालिमा से निकाला

भोर की लाली ने फिर सँवारा 

पवन दे रही थी मधुर हिलोर

पल्लव थाल मोती ओस के कोर

शुभ आरती उतारे उषा कुमारी ।।


ऊँचाईओं पर आके बदला आचार

ललाट की सिलवटें बता जाती सब सार।

लो घमंड की पट्टी सी चढ़ी आँखों अभी

सामने अब अपने लगते हैं तुच्छ सभी।

मैं का ही रहा सदा बोल-बाला भारी।


गर्व में यह क्यों भूल बैठता मूर्ख मनु

दिवस की पीठ पर  सवार साँझ का धनु।

ठहराव शिखर रहता कब किसका कहाँ

पूजा व्यक्ति नहीं व्यक्तित्व की होती यहाँ।

ऊँचाई के पश्चात पतन की दुश्वारी।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Tuesday, 16 August 2022

स्वार्थ के राग


 स्वार्थ का राग


अमन शांति के स्वर गूंजे तब

मनुज राग से निकले

दुनिया कैसी बदली-बदली

गरल हमेशा उगले।।


अमरबेल बन करके लटके 

वृक्षों का रस सोखे

जिसके दामन से लिपटी हो

उस को ही दे धोखे

हाथ-हाथ को काट रहा है

भय निष्ठा को निगले।।


बने सहायक प्रेम भाव जो 

सीढ़ी बन पग धरते

जिनके कारण बने आदमी

उनकी दुर्गत करते

स्वार्थ भाव का कारक तगड़ा 

धन के पीछे पगले।।


चहुं दिशा विपदा का डेरा

छूटा सब आनंद है

सम भावों में जो है रहते

उन्हें परमानंद है

समता भाईचारा छूटा 

धैर्य क्रोध से पिघले।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Saturday, 13 August 2022

बाल गीतिका घर


 बाल गीतिका

मापनी:-122 122 122


एक घर बनाएँ।


चलो एक घर हम बनाएँ।

उसे साथ मिलकर सजाएँ।।


जहाँ बाग छोटा महकता।

वहाँ कुछ सुमन भी खिलाएँ।।


भ्रमर की जहाँ गूँज प्यारी।

वहाँ तितलियाँ खिलखिलाएँ।।


जहाँ एक सोता सुहाना।

वहाँ मछलियाँ मुस्कुराएँ।।


चहक पाखियों की मधुर हो।

सरस गीत कोयल सुनाएँ।।


महल सा नहीं बस सदन हो।

जहाँ साथ हम गुनगुनाएँ।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Monday, 8 August 2022

तिरंगा


 तिरंगा


लहरा रहा हमारा अभिमान है तिरंगा।  

घर-घर फहर रहा है जय गान है तिरंगा। 


तन कर खड़ा गगन में यह दृश्य है विलक्षण।

उर भारती सुशोभित परिधान है तिरंगा।।


नगराज शीश शोभित दृग देख कर मुदित है।

शत भाल झुक रहें पथ गतिमान है तिरंगा।


कितनी सदी बिताई हत भाग्य दासता में। 

अब देश का बडप्पन बल आन है तिरंगा।


अब तो अमृत महोत्सव बस धूम से मनाओ।

सबके हृदय समाया इकतान है तिरंगा।।


रखती 'कुसुम' उमंगित पथ में सुमन हजारों।

सिर भारती तिलक सम प्रविधान है तिरंगा।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Tuesday, 2 August 2022

गीतिका:- चाँद अब निकोर है।


 गीतिका:- चाँद अब निकोर है।
 2212 1212.


लो चाँद अब निकोर है।

ये मन हुआ विभोर है।


सागर प्रशांत दिख रहा।

लहरें करें टकोर है।।


हर सिंधु के बहाव पर।

कुछ वात की झकोर है।।


पावस उमंग भर रहा

शाखा सुमन अकोर है।।


सूरज उगा उजास ले

सुंदर प्रवाल भोर है।।


मन जब निराश हो चले

तब कालिमा अघोर है।


सहचर सुमित्र साथ हो।

आनंद तब अथोर है।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'