Tuesday, 2 August 2022

गीतिका:- चाँद अब निकोर है।


 गीतिका:- चाँद अब निकोर है।
 2212 1212.


लो चाँद अब निकोर है।

ये मन हुआ विभोर है।


सागर प्रशांत दिख रहा।

लहरें करें टकोर है।।


हर सिंधु के बहाव पर।

कुछ वात की झकोर है।।


पावस उमंग भर रहा

शाखा सुमन अकोर है।।


सूरज उगा उजास ले

सुंदर प्रवाल भोर है।।


मन जब निराश हो चले

तब कालिमा अघोर है।


सहचर सुमित्र साथ हो।

आनंद तब अथोर है।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

18 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 4.8.22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4511 में दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी |
    धन्यवाद

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    1. हृदय से आभार आपका आदरणीय।
      चर्चा पर उपस्थित रहूंगी।
      सादर।

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 4 अगस्त 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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    1. बहुत आभार आपका भाई रविन्द्र जी
      पांच लिंक पर रचना को शामिल करने के लिए।
      सादर सस्नेह।

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  3. बहुत सुंदर

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    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
      सादर ्

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  4. प्रिय कुसुम दी, प्रकृति का जितना सुन्दर चित्रण आपकी रचनाओं में मिलता है वह अनुपम है। आपकी इस नज़र को सलाम है

    सादर

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    1. आपकी मोहक प्रतिक्रिया से मन विभोर हुआ प्रिय अपर्णा जी सच लेखन सार्थक हुआ।
      सस्नेह आभार आपका ‌

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  5. छोटे बहर की हिंदी ग़ज़ल चितचोर है । लाजवाब

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    1. सच में छोटी मापनी पर लिखना और लिख कर भाव स्पष्ट होना काफी कठिन है , पर आपकी सराहना से लग रहा है रचना सार्थक है।
      हृदय से आभार आपका ऐसे ही उत्साह वर्धन करते रहें।
      सादर सस्नेह

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  6. मन जब निराश हो चले
    तब कालिमा अघोर है।

    सहचर सुमित्र साथ हो।
    आनंद तब अथोर है।।
    ... बहुत सुंदर सार्थक अभिव्यक्ति ।

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    1. आपको पसंद आई गीतिका सार्थक हुई हृदय से आभार आपका जिज्ञासा जी।
      सस्नेह।

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  7. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय उत्साह वर्धन हुआ।
      सादर।

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  8. अति सुन्दर प्रस्तुति

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    1. हृदय से आभार आपका पूजा जी।
      सस्नेह।

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  9. प्रकृति की सुषमा को बयान करती सुंदर रचना

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    1. बहुत आभार आपका अनिता जी।
      उत्साहवर्धन करती सुंदर प्रतिक्रिया।
      सस्नेह।

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