Thursday, 21 April 2022

भाव शून्य कैसी कविता!


भाव शून्य कैसी कविता!

बिन रसों के काव्य सूना
टिक सके आदित्व कैसे।
छू न पाये जो हृदय तो
हो सृजन व्याप्तित्व कैसे।

रिक्त जल से गागरी हो
प्यास फिर बाकी रहेगी
बात अंतर की भला वो
लेखनी कैसे कहेगी
भाव से कविता विमुख हो
पा सके अस्तित्व कैसे।

गीत में संगीत होगा
तार झनके वाद्य के जब
बज उठी हो झाँझरे तो
मन मयूरा नाचता तब
रागिनी बिन राग फीका
लेख पर दायित्व कैसे।।

शिल्प खण्ड़ित भाव बिखरे
मुक्त हो उड़ते हुए से
हो विपाकी सा सृजन नित
तार सब जुड़ते हुए से
क्लांत हो जो व्यंजनाएँ
छंद का स्वामित्व कैसे।।

कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

19 comments:

  1. सच है बिना भाव की कैसी कविता
    बहुत सुन्दर

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    1. आत्मीय आभार आपका कविता जी।
      रचना को स्नेह मिला ।
      सस्नेह।

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  2. लाजवाब रचना, हमेशा की तरह।

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    1. हृदय से आभार आपका।
      सादर।

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  3. बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय

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    1. जी हृदय से आभार आपका।
      सादर।

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  4. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका वनिता जी।
      ब्लॉग पर सदा स्वागत है आपका।

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  5. शिल्प खण्ड़ित भाव बिखरे
    मुक्त हो उड़ते हुए से
    हो विपाकी सा सृजन नित
    तार सब जुड़ते हुए से
    क्लांत हो जो व्यंजनाएँ
    छंद का स्वामित्व कैसे।।..
    वाह!!
    सटीक अभिव्यक्ति।

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    1. सस्नेह आभार आपका जिज्ञासा जी।
      रचना को समर्थन मिला।
      सस्नेह।

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  6. भाव से कविता विमुख हो
    पा सके अस्तित्व कैसे।शब्द भाव की सूंदर वेणी !!

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    1. सुंदर सकारात्मक ऊर्जा देती प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार।
      सस्नेह।

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  7. अर्थपूर्ण और सुंदर गीत

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    1. जी हृदय से आभार आपका आदरणीय।
      सादर।

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  8. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।

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    1. हृदय से आभार आपका सखी उत्साह वर्धन हुआ।
      सस्नेह।

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  9. वाह ! सुन्दर और पहाड़ी नदी का सा प्रवाहपूर्ण गीत !

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    1. आत्मीय आभार आपका आदरणीय, रचना पसंद आई।
      रचना को आशीर्वाद मिला।
      सादर।

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  10. जी हृदय से आभार आपका।
    चर्चा मंच पर रचना को शामिल करने के लिए।

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