Sunday, 10 April 2022

स्मृतियों की खिड़की


 स्मृतियों की खिड़की


भागते से क्षण निमिष की

डोर थामे कौन पल

याद बहकी वात जैसी

थिर नहीं रहती अचल।।


भूल बैठे जिस समय को

मोह आसन साँधते

टूटते  से तार देखो

हर सिरे को बाँधते

दृष्टि ओझल दृश्य स्मृति पर

नाचते हैं आज कल।।


बीत जाते हैं बरस दिन

इक कुहासा याद का

उर्मि सुधि की एक चमके

तर्क फिर अतिवाद का

होंठ खिलती रेख स्मित

लो महकते पुष्प दल।।


पीर के कुछ पल जगे तो

नैन सीले फरफरा

फिर छिटकता मन उन्हें वो

इक झलक ले लहलहा

जो बरस के शाँत दिखते

नीरधर भी हैं सजल।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

21 comments:

  1. बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय

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    1. जी हृदय से आभार आपका।
      सादर।

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  2. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (12-4-22) को "ऐसे थे न‍िराला के राम और राम की शक्तिपूजा" (चर्चा अंक 4398) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    ------------
    कामिनी सिन्हा

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका।
      चर्चा मंच पर आना सदा आनंद का विषय है।
      सस्नेह।

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  3. सुन्दर बिम्ब से सजी बहुत बढ़िया रचना
    बधाई

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    1. जी हृदय से आभार आपका।
      सस्नेह।

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  4. बीत जाते हैं बरस दिन
    इक कुहासा याद का
    उर्मि सुधि की एक चमके
    तर्क फिर अतिवाद का
    होंठ खिलती रेख स्मित
    लो महकते पुष्प दल।।////
    यादों की खिड़की से झाँक रहे लम्हों की मार्मिक दास्ताँ।मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति प्रिय कुसुम बहन।हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं 🌺🌺♥️♥️🌷🌷❤❤🙏

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    1. सुंदर गहन व्याख्या
      हृदय से आभार आपका रेणु बहन,आपकी मोहक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सस्नेह।

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  5. पीर के कुछ पल जगे तो

    नैन सीले फरफरा

    फिर छिटकता मन उन्हें वो

    इक झलक ले लहलहा

    जो बरस के शाँत दिखते

    नीरधर भी हैं सजल।।बेहद हृदयस्पर्शी सृजन सखी।

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    1. हृदय से आभार आपका सखी।
      उत्साह वर्धन करने के लिए।
      सस्नेह।

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  6. बीत जाते हैं बरस दिन

    इक कुहासा याद का

    उर्मि सुधि की एक चमके

    तर्क फिर अतिवाद का

    होंठ खिलती रेख स्मित

    लो महकते पुष्प दल।।
    यादें वाकई जब भी याद आती हैं मन समय के उसी दौर में चला जाता है फिर वही महसूस करता है । खट्टी मीठी यादों के साथ तन मन के भावों को बहुत ही अद्भुत बिम्ब एवं व्यंजनाओं के साथ सजाया है आपने नवगीत में...
    बहुत ही लाजवाब...
    वाह!!!

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    1. सुंदर, सत्य व्याख्यात्मक टिप्पणी से रचना को नए आयाम मिले सुधा जी।
      आपका हार्दिक आभार मोहक, उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया।
      सस्नेह।

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  7. बहुत सुबर लिखा कुसुमजी, बीत जाते हैं बरस दिन

    इक कुहासा याद का

    उर्मि सुधि की एक चमके

    तर्क फिर अतिवाद का

    होंठ खिलती रेख स्मित

    लो महकते पुष्प दल।।...वाह

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    1. बहुत आभार आपका अलकनंदा जी आपकी स्नेहसिक्त टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ।
      सस्नेह।

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  8. बहुत सुन्दर मधुर गीत है कुसुम जी

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    1. बहुत बहुत आभार आपका, आपका स्नेह पाकर रचना सार्थक हुई।
      सादर सस्नेह।

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  9. स्मृतियों की खिड़की से न जाने कौन कौन से पल प्रवेश पा जाते हैं ।
    सुंदर रचना ।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका संगीता जी, आपकी प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सादर सस्नेह।

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  10. अंतिम पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगीं।

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    1. जी हृदय से आभार आपका आदरणीय।
      सादर।

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  11. सस्नेह आभार आपका।
    पाँच लिंक पर रचना को शामिल करने के लिए।
    सस्नेह।

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