Sunday, 3 April 2022

नेह का झूठा प्रतिदान


 नेह का झूठा प्रतिदान


सच्चे नेह का प्रतिदान भी

मिलता है जब झूठा

मुहँ देखें की बात निराली

पीठ पलटते खूटा।


पहने है लोगों ने कितने

देखो यहाँ मुखोटे

झूठे हैं व्यवहार सभी के

कितने गुड़कन लोटे

वाह री दुनिया कैसे-कैसे

संस्कारों ने लूटा।।


डींगों की सब भरे उड़ाने

कटे पंख का रोना

सरल मनुज को धोखा देते

बातों का कर टोना

तेज आँच में रांधे चावल

कोरा ठीकर फूटा।।


हृदय लगी है ठोकर गहरी

किसने कब है देखा

लेन देन का खेल है सारा

और बनावटी लेखा

अभी नहीं तो पल दो पल में 

पात झरेगा टूटा।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

30 comments:

  1. जब झूठ का मुलम्मा उतर जाये तो सरल बन को आघात क्यों न लगे???हृदय की इस ठोकर को कोई सांत्वना सहला नहीं सकती।सार्थक विषय पर भावपूर्ण प्रिय कुसुम बहन।हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई स्वीकार करें 🙏❤❤

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    1. आपकी टिप्पणी रचना में नव प्राण भर देती है रेणु बहन सुंदर विस्तृत प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई।
      सस्नेह आभार आपका।

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  2. जिसे हृदय की ठोकर लगी हो उसे उठाने वाले कम ही मिलते है। बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका ज्योति बहन।
      उत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया।
      सस्नेह।

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  3. यथार्थ का सटीक चित्रण किया है आपने । झूठ और छल का तो बोलबाला है ।
    बहुत बधाई कुसुम जी ।

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    1. सस्नेह आभार आपका जिज्ञासा जी।
      आपकी रचना को समर्थन देती प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई।
      सस्नेह।

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  4. बहुत सुन्दर और सार्थक रचना, जय जय श्री राधे।

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    1. जी हृदय से आभार आपका, सुंदर सार्थक प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई।
      सादर।
      ब्लॉग पर सदा स्वागत है आपका।

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  5. जब झूठ का बोलबाला चारोँ ओर हो तो फिर समझ में कुछ नहीं आता है । यहीं जीवन का संधर्ष है ।
    - बीजेन्द्र जैमिनी

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    1. जी सुंदर व्याख्यात्मक प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई।
      बहुत आभार आपका।

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  6. वाह वाह, सुंदर अभिव्यक्ति👍👍🌷🌷🙏🙏

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    1. जी हृदय से आभार आपका उत्साहवर्धन हुआ।
      सादर।

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  7. वाह! बहुत ही सुंदर सृजन भावों की गहनता लिए।
    यही जीवन है व्यक्ति स्वयं के विचारों से ही जीवन सींचता है।
    पहने है लोगों ने कितने

    देखो यहाँ मुखोटे

    झूठे हैं व्यवहार सभी के

    कितने गुड़कन लोटे

    वाह री दुनिया कैसे-कैसे

    संस्कारों ने लूटा... वाह!👌

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    1. हृदय से आभार आपका प्रिय अनिता आपकी सुंदर प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई।
      सस्नेह।

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  8. बहुत बहुत सुन्दर

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    1. जी हृदय से आभार आपका आदरणीय।
      सादर।

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  9. डींगों की सब भरे उड़ाने
    कटे पंख का रोना
    सरल मनुज को धोखा देते
    बातों का कर टोना
    एकदम सटीक...ये भूल जाते है कि
    अभी नहीं तो पल दो पल में
    पात झरेगा टूटा।।
    वाह!!!!
    एक कटु सत्य बयां किया है लाजवाब नवगीत में..
    कमाल का सृजन।

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    1. आपकी सराहना से रचना को नये आयाम मिले सुधा जी ।
      सुंदर सकारात्मक टिप्पणी के लिए हृदय से आभार आपका।
      सस्नेह।

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  10. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(०८-०४ -२०२२ ) को
    ''उसकी हँसी(चर्चा अंक-४३९४)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. जी चर्चा मंच पर आना सदा सुखद अहसास ।
      मैं अभिभूत हूं।
      सादर सस्नेह।

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  11. कुसुम जी, अटल जी के लहजे में मैं कहूँगा -
    हमारे जन-प्रिय नेताओं की आप इस प्रकार से पोल खोल रही हैं.
    ये अच्छी बात नहीं है.

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    1. जी सर! सहमत हूं मैं, बात तो पर निंदा , अच्छी हो ही नहीं सकती।
      फिर भी कलम बेजुबान बहक जाती है।
      सादर आभार आपका आदरणीय।

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  12. बेहतरीन प्रस्तुति

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    1. हृदय से आभार आपका आदरणीय।
      सादर।

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  13. अद्भुत...अद्भुत...कुसुम जी, क्‍या खूब ही लिखा है कि 'मुहँ देखें की बात निराली

    पीठ पलटते खूटा'...ये #HumanBehaviour का सच है

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    1. रचना को स्नेह से प्लावित कर दिया आपने अलकनंदा जी।
      सस्नेह आभार आपका।
      सुंदर प्रतिक्रिया के लिए।

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  14. सुंदर प्रस्तुति!!

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    1. जी हृदय से आभार आपका
      उत्साह वर्धन हुआ।
      सादर।
      ब्लॉग पर सदा स्वागत है आपका।

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  15. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका सखी।

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