Thursday, 21 April 2022
भाव शून्य कैसी कविता!
Sunday, 10 April 2022
स्मृतियों की खिड़की
स्मृतियों की खिड़की
भागते से क्षण निमिष की
डोर थामे कौन पल
याद बहकी वात जैसी
थिर नहीं रहती अचल।।
भूल बैठे जिस समय को
मोह आसन साँधते
टूटते से तार देखो
हर सिरे को बाँधते
दृष्टि ओझल दृश्य स्मृति पर
नाचते हैं आज कल।।
बीत जाते हैं बरस दिन
इक कुहासा याद का
उर्मि सुधि की एक चमके
तर्क फिर अतिवाद का
होंठ खिलती रेख स्मित
लो महकते पुष्प दल।।
पीर के कुछ पल जगे तो
नैन सीले फरफरा
फिर छिटकता मन उन्हें वो
इक झलक ले लहलहा
जो बरस के शाँत दिखते
नीरधर भी हैं सजल।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
Sunday, 3 April 2022
नेह का झूठा प्रतिदान
नेह का झूठा प्रतिदान
सच्चे नेह का प्रतिदान भी
मिलता है जब झूठा
मुहँ देखें की बात निराली
पीठ पलटते खूटा।
पहने है लोगों ने कितने
देखो यहाँ मुखोटे
झूठे हैं व्यवहार सभी के
कितने गुड़कन लोटे
वाह री दुनिया कैसे-कैसे
संस्कारों ने लूटा।।
डींगों की सब भरे उड़ाने
कटे पंख का रोना
सरल मनुज को धोखा देते
बातों का कर टोना
तेज आँच में रांधे चावल
कोरा ठीकर फूटा।।
हृदय लगी है ठोकर गहरी
किसने कब है देखा
लेन देन का खेल है सारा
और बनावटी लेखा
अभी नहीं तो पल दो पल में
पात झरेगा टूटा।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'