Friday, 19 April 2019

लो टिकोरों से झूमी डालियां

लो टिकोरों से झूमी डालियां

फागुन के महीने में आम के पेड़ मंजरियों या "मौरों" से लद जाते हैं, जिनकी मीठी गंध से दिशाएँ भर जाती हैं । चैत के आरंभ में मौर झड़ने लग जाते हैं और 'सरसई' (सरसों के बराबर फल) दिखने लगते हैं । जब कच्चे फल बेर के बराबर हो जाते हैं, तब वे 'टिकोरे' कहलाते है । जब वे पूरे बढ़ जाते हैं और उनमें जाली पड़ने लगती है, तब उन्हे 'अंबिया' कहते हैं।
अंबिया पक कर आम जिसे रसाल कहते हैं।
                        ~ ~ ~

चंदन  सा बिखरा हवाओं में
मौरों की खुशबू है फिजाओं में
ये किसीके आने का संगीत है
या मौसम का रुनझुन गीत है।

मन की आस फिर जग गई 
नभ पर अनुगूँज  बिखर गई
होले से मदमाता शैशव आया
आम द्रुम सरसई से सरस आया ।

देखो टिकोरे से भर झूमी डालियां
कहने लगे सब खूब आयेगी अंबिया
रसाल की गांव मेंं होगी भरमार
इस बार मेले लगेंगे होगी बहार।

लौट आवो एक बार फिर घर द्वारे
सारा परिवार खड़ा है आंखें पसारे
चलो माना शहर में खुश हो तुम
पर बिन तुम्हारे यहाँ खुशियां हैं गुम।

           कुसुम कोठारी।

15 comments:

  1. वाह...,सशक्त भूमिका और बेहतरीन रचना ।

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    1. ढेर सा आभार मीना जी सुकून देती आपकी प्रतिक्रिया।
      सस्नेह।

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  2. खूबसूरत रचना..

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    1. बहुत बहुत आभार।
      सस्नेह

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  3. चंदन सा बिखरा हवाओं में
    मौरों की खुशबू है फिजाओं में
    ये किसीके आने का संगीत है
    या मौसम का रुनझुन गीत है।
    बेहतरीन रचना सखी 👌👌

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    1. आपकी मन भावन प्रतिक्रिया का सस्नेह आभार सखी ।

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  4. बहुत ही सुंदर रचना,कुसुम दी।

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    1. बहुत सा स्नेह प्रिय ज्योति बहन ।
      सस्नेह ।

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  5. बहुत सुंदर प्राकृतिक चित्रण

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  6. आपकी सराहना करती प्रतिक्रिया उत्साह वर्धक है भाई अमित जी सस्नेह आभार ।

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  7. बहुत ही सुन्दर दी

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  8. मंजरियाँ (मौर) सरसई (टिकोरे)से अंबिया और फिर आम (रसाल)....साथ में खूबसूरत रचना...
    वाह!!!

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  9. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    २२ अप्रैल २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  10. ये किसीके आने का संगीत है
    या मौसम का रुनझुन गीत है।
    बेहतरीन रचना

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