Thursday, 27 December 2018

नव वर्ष एक सोच

नववर्ष एक सोच

नव वर्ष एक सोच
जो एक पुरे साल नही बदलता
वो एक पल में नव होता
उस एक क्षण को
पार करने में साल गुजरता
सुख, दुख ,शोक ,चिंता अवसाद
सब अडिग से रहते
बस कैलेंडर बदलता
और सब नया हो जाता !!
अंक गणित का खेल सा लगता
नव शताब्दी क्या बदला ?
और बदला तो कितना अच्छा था ?
था कुछ खुशी मनाने लायक ?
या फिर एक ढर्रा था
हर वर्ष नव वर्ष आया फिर आयेगा   
पता नही ये क्या गति जीवन की
कुछ हाथ ना पल्ले
वहीं खड़े जहां से थे चले।

जीर्ण शीर्ण हर सोच बदल दें
ये साल  खुशियों से भर दें ।

          कुसुम कोठारी ।

9 comments:

  1. Let us welcome the new year with resolve to find opportunities and happiness hidden in each day with positive thoughts and deeds.

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  3. बहुत प्यारे अहसासों को शब्द दिए है आपने

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    1. बहुत बहुत आभार संजय जी आपकी प्रतिक्रिया से प्रोत्साहन मिला।
      सादर।

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  4. जीर्ण शीर्ण हर सोच बदल दें,ये साल खुशियों से भर दें ।
    बहुत खूब ............

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    1. बहुत सा आभार मित्र जी ।
      सस्नेह ।

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  5. जीर्ण शीर्ण हर सोच बदल दें....बेहतरीन 👌

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