Monday, 15 October 2018

दामन में चाँद

दामन में चाँद

अंधेरों से डर कैसा अब, मैने चाँद थामा दामन में
चांदनी बिखरी मेरे आंगन में,मैने चाँद थामा दामन में ।

उजाले लेने बसेरा आये मेरे द्वारे, नयनों में डेरा डाला
पलकें मूंद रखा अंखियन में, मैने चाँद थामा दामन में ।

हर शाख पर डोलत डोलत थका हारा सा चन्द्रमा
आया मुझसे लेने आसरा, मैने चाँद थामा दामन में ।

उर्मियां चंचल चपल सी डोलती पुर और उपवन में
घबराई ढूंढती शशि को आई, मैने चाँद थाम दामन में।

आमावस्या का ना रहा नामोनिशान अब जीवन में
किरणों का वास मुझ गृह में,मैने चाँद थामा दामन में  ।
                      कुसुम कोठारी ।

21 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण रचना 🙏

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    1. बहुत सा स्नेह आभार बहना ।
      आपकी प्रतिक्रिया सदा उत्साह बढाती है।
      शुभ संध्या।
      दशहरे की शुभकामनाएं

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  2. अंधेरों से डर कैसा अब, मैने चाँद थामा दामन में
    चांदनी बिखरी मेरे आंगन में,मैने चाँद थामा दामन में ।
    सुंदर भावों से सजी बेहतरीन रचना सखी

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    1. सखी आपकी मनभावन प्रतिक्रिया से रचना को सार्थकता मिली ।
      सस्नेह आभार।
      शुभ संध्या ।
      दशहरे की शुभकामनाएं।

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  3. उर्मियां चंचल चपल सी डोलती पुर और उपवन में
    घबराई ढूंढती शशि को आई, मैने चाँद थाम दामन में।
    बहुत ही खूबसूरती से लिखी गई कविता ....बधाई ।

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    1. आभार बहुत सा पुरूषोत्तम जी आपकी उपस्थिति सदा लेखन को गति देती है।
      दशहरे की शुभकामनाएं।

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  4. बहुत सुन्दर रचना ... मन मोह गई।

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    1. सस्नेह आभार सखी आपकी प्रतिक्रिया भी मन को आनंद देती है ।
      दशहरे की शुभकामनाएं।

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  5. वाह!!कुसुम जी ,बहुत सुंदर !!👌

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    1. सस्नेह आभार सखी ।
      दशहरे की शुभकामनाएं।

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  6. नमस्ते,
    आपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
    ( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
    गुरुवार 18 अक्टूबर 2018 को प्रकाशनार्थ 1189 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।

    प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
    चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
    सधन्यवाद।

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    1. जी सादर आभार मेरी उपस्थित निश्चित है।
      सादर

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  7. बहुत ही सुन्दर रचना सखी 👌

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    1. स्नेह आभार प्रिय सखी जी ।
      दशहरे की शुभकामनाएं

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  8. सादर आभार आदरणीय।
    दशहरे की शुभकामनाएं ।

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  9. आमावस्या का ना रहा नामोनिशान अब जीवन में
    किरणों का वास मुझ गृह में,मैने चाँद थामा दामन में ।
    दामन में चाँद....
    क्या बात ...क्या बात...
    वाह!!!
    बहुत ही लाजवाब...

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    1. बहुत सुंदर!
      आपकी सराहना रचना को आलंबन देती है सखी सस्नेह आभार ।

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  10. दामन में चांद ही आ गया तो अंधेरा कैसा। बहुत सुंदर रचना.

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    1. जी सही सटीक आशा जी, ब्लॉग पर आपका स्वागत है सदा इंतजार रहेगा,
      बहुत सा स्नेह आभार।

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  11. वाह और सिर्फ वाह प्रिय कुसुम बहन !!!!!!
    जब चाँद ही थाम लिया दामन में - क्या पाना शेष रहा अब जग में ?
    हुए अदृश्य तम -सब उजास मेरे - उतर तारे बिछे अम्बर से पग में !!!!!!
    प्यारे सी रचना के लिए सस्नेह शुभकामनायें

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    1. वाह रेनू बहन आपने तो चांद के साथ तारे भी भर दिये आंगन और दामन में शुभाशीषो के, आप जैसे स्नेही जिनके हो उनके पग पग सचमुच तारे ही बिखरे हुए हैं ।
      अतुल्य स्नेह।

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