Saturday, 13 October 2018

उलझन और उलझती जाये

उलझन और उलझती जाये

शांत निर्झरिणी में गर कंकर मारो
दो क्षण विचलित हो ,
फिर शांत हो जाती है ।
मन के शांत सरोवर में
चोट अगर कोई लग जाये
व्याकुल हो मन बावरा ,
स्वयं को ही न समझ पाये
धागे सोचों के बल खाये
जितनी भी चाहें सुलझाओ
उलझन और उलझती जाये ।
पर ऐसे में भी अक्सर ,
अपने अस्तित्व का अहसास,
सदा सुखद सा लगता है
सच मन ही तो है,
मन की थाह कहाँ कोई पाये ।

          कुसुम कोठारी ।

20 comments:

  1. सच मन ही तो है,
    मन की थाह कहाँ कोई पाये...
    सुंदर भाव समायोजन ....

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    1. जी बहुत सा आभार पुरुषोत्तम जी आपकी प्रोत्साहित करती प्रतिक्रिया का।

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  2. मन के शांत सरोवर में
    चोट अगर कोई लग जाये
    व्याकुल हो मन बावरा ,
    स्वयं को ही न समझ पाये बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना

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    1. सस्नेह आभार सखी आपकी प्रतिक्रिया उत्साह वर्धक, सदा अनुराग जताती है ।

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  3. अपने अस्तित्व का अहसास,
    सदा सुखद सा लगता है
    अस्तित्व का एहसास कराती सुंदर रचना

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    1. अपने अस्तित्व का एहसास सुखद ही होता है चाहे परिस्थिति कितनी ही विपरीत क्यों न हो,बहुत बहुत स्नेह आभार अभिलाषा बहना ।

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  4. उलझनों में उलझकर
    उलझते ही रह गए
    इस कदर उलझा ये दिल
    हम उलझनों के हो गए

    लाजवाब रचना सखी।बहुत खूब।

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    1. वाह क्या कहने सखी आपकी प्रतिक्रिया खुद एक सुंदर रचना है बहुत सा आभार आपके स्नेह आगमन का।

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  5. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक १४ अक्टूबर २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. ओ आश्चर्य श्वेता!!
      आना तो निश्चित है ।

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  6. बहुत सा आभार लोकेश जी ।

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  7. ठहरे पानी में कंकर मारकर देखो
    वो हलचल जो पैदा होती है वो जब किनारों तक आ जाती है तब पानी शांत होता है.ठीक यही दशा हमारे व्याकुल मन की रहती है.
    मन चंचल होता है चंचलता ही उसकी प्रकृति है यानी बहता ही रहता है किसी नदी के पानी की तरह तो चोट का असर आराम से झेल लेता है लेकिन किसी ने मन को शांत बना के रखा है ठीक किसी ठहरे पानी की तरह तो वो छोटी सी चोट से बहुत ज्यादा प्रभावित हो जाता है. इसीलिए शांत आदमी का गुस्सा सबसे खतरनाक होता है.
    इसमें द्वंद्व का भाव है लेकिन ये सत्य है.
    आपकी रचना लाजवाब है.

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    1. शुक्रिया रोहितास जी आपने इतनी सुंदर व्याख्या की है नीर और मन की, जो प्रभावशाली ही नही सटीक भी है। बहुत बहुत आभार आपका सक्रिय प्रतिक्रिया से रचनाकार को सदा कुछ अच्छा करने की प्रेरणा मिलती है सदा अनुग्रह बनाया रखें ।
      सादर।

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    1. सस्नेह आभार बहन आपका सदा स्नेह बनाये रखें ।

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  9. वाह!!बहुत उम्दा ,भावपूर्ण रचना .

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    1. सस्नेह आभार सखी शुभा जी आप प्रबुद्ध लोगो की उपस्थिति रचना का मान है।

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  10. अपने अस्तित्व का अहसास,
    सदा सुखद सा लगता है
    सच मन ही तो है,
    मन की थाह कहाँ कोई पाये ।
    मन की थाह पाना बहुत मुश्किल है।जिसने थाह पा ली बस सुलझ गया....
    बहुत सुन्दर..
    वाह!!!!

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    1. सस्नेह आभार सुधा जी ।

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