Thursday, 18 October 2018

उतरा मुलम्मा सब बदरंग

उतरा मुलम्मा सब बदरंग

वक्त बदला तो संसार ही बदला नजर आता है
उतरा मुलम्मा फिर सब बदरंग नजर आता है।

दुरूस्त ना की कस्ती और डाली लहरो में
फिर अंजाम ,क्या हो साफ नजर आता है।

मिटते हैं आशियाने मिट्टी के ,सागर किनारे
फिर क्यो बिखरा ओ परेशान नजर आता है।

ख्वाब कब बसाता है गुलिस्ता किसीका
ऐसा  उजड़ा कि बस हैरान नजर आता है।

                  कुसुम कोठारी ।

15 comments:

  1. मिटते हैं आशियाने मिट्टी के ,सागर किनारे
    फिर क्यो बिखरा ओ परेशान नजर आता है।
    बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना 👌👌

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    1. आपकी प्रतिक्रिया लेखन को संबल देती सी, प्रिय सखी आभार बहुत सा।

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  2. वक्त बदला तो संसार ही बदला नजर आता है
    उतरा मुलम्मा फिर सब बदरंग नजर आता है
    एकदम खरी बात बहुत ही सुन्दर रचना

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    1. आपके समर्थन से रचना को गति मिली बहना।
      सस्नेह आभार ।

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  3. सच है पूरी तैयारी कर के ही इस भव सागर में उतरना चाहिए ...
    सुंदर रचना ...

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    1. भावों को समर्थन देती उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया आपकी, सादर आभार नासवा जी।

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  4. वाह सखी बहुत ही लाजवाब रचना
    बहुत ही कमाल की गजल

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    1. आपकी मनमोहक प्रतिक्रिया मन लुभा गई सखी, सस्नेह आभार ।

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  5. वक्त बदला तो संसार ही बदला नजर आता है
    उतरा मुलम्मा फिर सब बदरंग नजर आता है।!!!!!!!!!
    सचमुच सब समय का ही फेर है | छद्म मुल्लमा धारकों की पोलिश उतरी तो नकली चेहरा सामने आ ही जता है | सार्थक रचना प्रिय कुसुम बहन |

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    1. आपकी सार्थक, रचना को विस्तार देती प्रतिक्रिया
      सच कहूं रेनू बहन बहुत आनंद आता है जब स्वयं की रचना को कोई यूं अभिव्यक्ति देता है तो, और आप ऐसा करने में महारथता रखते हैं आपके स्नेह और प्रबुद्धता के लिये आभार शब्द बस औपचारिक लगता है, सस्नेह बहन ।

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  6. ढेर सारा आभार मित्र जी

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  7. आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है. https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2018/10/92-93.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!

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    1. जी सादर आभार, देरी से पर चर्चा में उपस्थित रही।
      सादर।

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  8. दुरूस्त ना की कस्ती और डाली लहरो में
    फिर अंजाम ,क्या हो साफ नजर आता है।

    बहुत सुन्दर रचना कुसुम जी ।

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    1. मीना जी आपकी प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला सस्नेह आभार ।

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