Tuesday, 10 July 2018

ना जाने क्या हो रहा है

.      ना जाने क्या हो रहा है

    कहते रावण स्वाहा हो गया
      कंस वंश से नाश हो गया
   हिटलर भी तो दफन हो गय
फिर भी खुले आम उन सी प्रवृत्तियां
विद्रूप आधिपत्य जमाये बैठी चहुँ और
   दशानन सौ मुख लिये घुम रहा
  कंश की सारी क्रूरता तांडव कर रही
हिटलर सत्ता के द्वारा पर अट्टहास कर रहा
लगता है तीनों की आत्मा का मिलन हो गया
संसार मे शैतानों ने श्रोणित बीज बो दिये
दंभ, अत्याचार अतिचार, लालसा और भोग का
मंचन हो खुला नाटक खेला जा रहा
 सूत्र धार पीछे बैठा मुस्कुरा रहा
         मानवता कराह रही
        नैतिकता दम तोड गई
 संस्कार बीते युग की कहानी बन चुके
सदाचार ऐतिहासिक तथ्य बन सिसक रहे
    हैवानियत बेखौफ घुम रही
 नई सदी मे क्या क्या हो रहा है
इंसान इंसानियत खो के इतरा रहा है
और ऊपर वाला ना देख रहा ना सुन रहा ना बोल रहा है
जाने क्या हो रहा है जाने क्या हो रहा है।
                कुसुम कोठारी ह

17 comments:

  1. सच में जाने क्या हो गया है मनुष्य को,पशु बनता जा रहा है असभ्यता और पाशविक की सारी हदें पार कर नये कीर्तिमान स्थापित किये जा रहा है।
    विचारणीय सुंदर समसामयिक रचना दी।

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    1. आभार श्वेता सचमुच सभ्यता अपने दुस्कर मोड़ पर खडी है धारासाही होने को, सामायिक रचनाओं पर सुधि पाठको की प्रतिक्रिया मिल जाये तो लिखना सार्थक हो जाता है ।
      सस्नेह।

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  2. वाह सटीक .सत्य और तीक्ष्ण लेखन ...जाने क्या हो गया है .....
    मानवता को जंग का गई
    इंसान करें व्यभिचार
    दुर्जनों का राज है कायम
    सज्जनता भई लाचार !
    कुटिलता के कीर्तिमान
    हर और स्थापित है
    कौन अधिक पाशविक बनता
    इस दौड़ मैं शमिल है !

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  3. सत्य .सटीक ओए तीक्ष्ण लेखन ....बेहतरीन
    सज्जनता को जंग खा गई
    इंसान बना दुर्दांत
    बदनीयती का रोज यहां
    होता है घमासान
    कौन अधिक पाशविक होगा
    इस दौड़ मैं शामिल है
    रावण कंस को पीछे छोड़ा
    इतने बड़े दानव है !

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    1. वाह मीता आपकी प्रतिक्रिया रचना को पूर्ण विस्तार और समर्थन देती बहुत दम दार पंक्तियाँ आपकी,
      लेखन गति पा गया ।सस्नेह ढेर सा आभार।

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  4. वाह सखी सत्य लिखा आप ने
    कभी कभी हकीकत इतनी कड़वी होती है की मन को दुखी कर देती है
    बहुत अच्छा लिखा।

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    1. आभार सखी हकीकत सदैव कडवी ही होती है रचना को आपका स्नेह मिला लिखना सार्थक हुवा ।

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  5. बहुत सुंदर रचना कुसुम जी

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    1. सस्नेह आभार मित्र जी ।

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  6. नई सदी में इंसानियत पर कुठाराघात अद्भूत रचना

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    1. जी सादर आभार प्रोत्साहन के लिये।

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  7. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    १७ जून २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. सस्नेह आभार पांच लिंकों का आनंद में रचना को शामिल करने के लिए।

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  8. आज खोती जा यही इंसानियत को आपने अपने शब्दों द्वारा बहुत खूबसूरती के साथ उकेरा है प्रिय सखी कुसुम जी ।

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    1. बहुत बहुत आभार शुभा जी आपकी सार्थक प्रतिक्रिया से रचना को सार्थकता मिली ।

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  9. लगता है तीनों की आत्मा का मिलन हो गया
    संसार मे शैतानों ने श्रोणित बीज बो दिये
    सच ,नज़ारा कुछ ऐसा ही हो गया हैं ,लेकिन इनका अंत भी निश्चित हैं ,बहुत सार्थक लेखन ,सादर नमस्कार कुसुम जी

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    1. बहुत बहुत आभार कामिनी जी आपकी सराहना और समर्थन के साथ सुंदर व्याख्या मिली।
      सस्नेह

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