Wednesday, 21 March 2018

तेरी धरा वैधव्य भोग रही...

कब आवोगे हे मुरलीधर
तेरी धरा वैधव्य भोग रही
श्रृंगार विहीन भई सुकुमारी
कितने वो दर्द  झेल रही
कभी तुम एक द्रोपदी की रक्षा हेतू
दौडे दौडे आये थे
आज संतप्त  समाज सारा
चहुँ और हाहाकार है
आज नारी की लाजदेखो
लुटती भरे बाजार है
तुम न आवो मधुसूदन
तुम्हें घनेरे काज है
कम से कम
अपना कोई दूत पठाओ
इस जलती अवनी को
कुछ ठण्डी बौछार  भिजाओ।

5 comments:

  1. लाजवाब रचना.....
    आज नारी की लाजदेखो
    लुटती भरे बाजार है..?
    वाह!!!!

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  2. बहुत ही सुंदर और सार्थक रचना

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  3. बेहद खूबसूरत और सार्थक रचना कुसुम जी

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  4. समसामयिक के परिपेक्ष्य को ध्यान में रख मुरलीधर से सटीक याचना।

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