Tuesday, 6 February 2018

ओ घटा के मेघ शयामल

ओ गगन के चंद्रमा मै शुभ्र ज्योत्सना तेरी हूं
तूं आकाश भाल विराजित मै धरा तक फैली हूं

ओ अक्षूण भास्कर मै तेरी उज्ज्वल  प्रभा हूं
तूं विस्तृत नभ मे आच्छादित मै तेरी प्रतिछाया हूं

ओ घटा के मेघ शयामल मै तेरी जल धार हूं
तूं धरा की प्यास हर मै तेरा तृप्त अनुराग हूं

ओ सागर अन्तर तल गहरे मै तेरा विस्तार हूं
तूं घोर रोर प्रभंजन है मै तेरा अगाध उत्थान हूं

ओ मधुबन के हर सिंगार मै तेरा रंग गुलनार हूं
तूं मोहनी माया सा है मै निर्मल बासंती बयार हूं।
             कुसुम कोठारी।

4 comments:

  1. बहुत सुंदर
    खूबसूरत शब्दों से सजी
    सुंदर भावपूर्ण रचना

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  2. बहुत बहुत आभार सखी।

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  3. प्राकृति के रंग लिए सुंदर रचना है ...

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