Followers

Sunday 7 April 2024

गीतिका


 गीतिका 


हार गले में फूलों के हो श्रम से मोती लाना होगा।

कठिन नहीं होगा अब कुछ भी गीत जीत का गाना होगा।


दृढ़ता से आगे बढ़लें तो राहें सदा मिला करती है।

तजकर अंतस का आलस बस उद्यम से सब पाना होगा।


दुख के काले बादल छाए हाथों से सब छूटा जाए।

जो बीता वो बीत गया अब नवल हमारा बाना होगा।।


आत्म साधना करते रहना ध्येय मोक्ष का रखना शाश्वत । 

पुण्य गठरिया बाँध रखो तुम सदन छोड़ कब जाना होगा। 


पर्यावरण स्वच्छ रखना है इससे ही मानव हित समझो।

दानी बड़ी प्रकृति अपनी हर चिड़िया को दाना होगा।


मातृभूमि पर प्राण वार दें प्रज्ञा से यह निश्चय कर लें।

एक साथ मिलकर ही सब को बैरी पर अब छाना होगा।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Wednesday 21 February 2024

निसर्ग अद्भुत


 चामर छंद आधारित गीत


चातकी गुहार भी सदैव मोह में ढली।

बीतती हुई निशा बड़ी लगे भली- भली।


नीलिमा अनंत की वितान रूप नील सी।

मंजुला दिखे निहारिका विशाल झील सी‌।

आसमान शोभिनी प्रकाश भंगिमा भरी।

वो विभावरी चली लगे निवेदिता खरी।

झींगुरी प्रलाप गूंज खंद्दरों गली-गली।


चातकी गुहार भी सदैव मोह में ढली।


काल अंधकार का महा वितान छोड़ता। 

शंख नाद भी बजा प्रमाद ऊंघ तोड़ता।

पूर्व के मुखारविंद स्वर्ण रूप सा जड़ा।

पक्ष-पक्ष भानु का प्रकाश पूंज है झड़ा।

मोहिनी सरोज की खिली लगे कली-कली।।


चातकी गुहार भी सदैव मोह में ढली।


भोर नन्दिनी उठी अबोध रूप भा गया।

कोकिला प्रमोद में कहे बसंत आ गया‌‌

मोह में फँसा विमुग्ध भृंग है प्रमाद में।

हंस है उदास सा मरालिनी विषाद में।

हो उमंग में विभोर मोद से हवा चली।।


चातकी गुहार भी सदैव मोह में ढली।

कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Tuesday 6 February 2024

निशा की ओर


अरविंद सवैया

निशा की ओर

ढलता  रवि साँझ हुई अब तो, किरणें पसरी चढ़ अंबर छोर।
हर कोण लगे भर मांग रहा, नव दुल्हन ज्यों मन भाव विभोर।
खग लौट रहे निज नीड़ दिशा, अँधियार भरे अब सर्व अघोर।
तन क्लांत चले निज गेह सभी, श्रम दूर करे अब श्रांन्ति अथोर।।

कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Sunday 21 January 2024

निशा के कौतुक


 निशा के कौतुक


नव पल्लव की सेज सजी है

पसरी उनपर उर्मिल शीतल

विटप शाख का सरस झूलना

प्रभाकीट का मचल रहा दल।।


सुमन सो रहे नयन झुकाए

तारक दल करते मन मोहित

ओपदार बादल के टुकड़े

नभ पर इधर उधर सोहित

सरिता बहती सरगम बजती

मनभावन सी लगती कल-कल।।


विटप शाख का सरस झूलना

प्रभाकीट का मचल रहा दल।।


झींगुर झीं झीं करते भागे

बोले बुलबुल बोल रसीले

वहाँ पपीहा पी तब गाए

कलझाते जब बादल नीले

लो थम-थम के पवमान चले 

खड़ी सौम्य रजनी भी  निश्चल।।


विटप शाख का सरस झूलना

प्रभाकीट का मचल रहा दल।।


दूर श्रृंग के पीछे छुपकर

चाँद खेलता लुकछिप खेला

चट्टानों के भूरे तन पर

रजत चाँदनी का है मेला

गहरे सागर के पानी में

मची हुई है भारी खलबल।।


विटप शाख का सरस झूलना

प्रभाकीट का मचल रहा दल।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Saturday 13 January 2024

सूरज की संक्रांति


 मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं।


रवि ने ओढ़ी आज रजाई

मुंह ढाप कर सोए।

कितने दिवस बाद कश्यप सुत

सुख सपने में खोए।


पोष मास में सूर्य देव जब

मकर राशि में आते

सरिता में नाहन होता है

पर्व मनाए जाते

त्याग शीत का भय भक्तों ने

पाप गंग में धोए।।


ठंडी ठंडी चले हवाएं

पादप पात गिराते

गुड़  तिल के मिष्ठान अनूठे

सभी चाव से खाते

तभी ठंड फिर करवट लेती

गंगा चीर भिगोए।


दान स्नान का लाभ कमाए

आस्था सह नर नारी

अलग-अलग प्रांतों में मनता

मेले लगते भारी

पुण्य मिले संक्रांति काल में

शुभ दाने जो बोए।


किया अगर शुचिता परिवर्तन 

फिर क्यों भव-भव रोए।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Friday 12 January 2024

युवा दिवस


 राष्ट्रीय युवा दिवस पर समस्त युवा शक्ति को हार्दिक शुभकामनाएँ 🌹

युवाओं के लिए स्वामी विवेकानंद जी की शिक्षाएं 


उठो युवाओं नींद से, बढ़ो चलो हो दक्ष।

जब तक पूरा कार्य हो, लगे रहो प्रत्यक्ष।।


जीवन में संयम रखो, रखो ध्यान पर ध्यान।

दृष्टि रखो बस चित्त पर, तभी बढ़ेगा ज्ञान।।


अनुभव जग में श्रेष्ठ है, यही शिक्षक महान।

अनुभव से सब सीख लो, यहीं दिलाता मान।।


उद्यम धैर्य पवित्रता, तीन गुणों को धार।

जग में हो सम्मान भी, यही आचरण सार।।


निज पर हो विश्वास तो, पूरण होते काम।

निज पर निज अवलंब ही, कार्य सरे अविराम।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Wednesday 3 January 2024

मदी जा रही निशा

गीतिका:मदी जा रही निशा


लहर आ करे खेल तट पर उछल कर।

कभी सिंधु हिय में बसे फिर मचल कर।।


हवा कर रही क्यों यहाँ छेड़खानी।

लगे आ रही अब दिशाएँ बदल कर।।


बजे रागिनी ये मधुर वृक्ष डोले।

सरस गा रहा है पपीहा बहल कर।।


धरा पर नमी है उधर चा़ँद भीगा।

झटक वो गिरी चाँदनी भी सँभल कर।।


किरण सो रही है लता पर पसर अब।

मदी जा रही है निशा भी खजल कर।।


गगन आँगने में चमक जो बिखेरे‌

कई एक तारे जगे हैं पटल कर।।


स्वरचित 

कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'