सावन मनभावन
ऋतु का सुंदर रूप उजागर
सावन आतुर है आने को।
मन वीणा में सरस रागिनी
गान खुशी का अब गाने को।
ओस कणों के संग सुनहली,
उर्मिल देखो क्रीड़ा करती।
सूरज की चमकीली बाँहें,
वसुधा आँगन आभा भरती।
हवा चली है, मन मुकुलित सा
मचल रहा सब कुछ पाने को।
आज पवन है भीगी भीगी,
पात-पात निखरा-निखरा।
हर बिरवे की डाली मुखरित,
कानन का आँगन हरा-भरा।
श्याम सलौने मचल रहे हैं,
आकाश रेख तक छाने को।।
माटी महकी सौरभ बिखरा,
सरित कूल दादुर का खेला
विहग टोलियाँ कलरव करती,
खुशियों का सजता है मेला।
कवि के उर में कविता मचली
भावों के दीप जलाने को।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
सुन्दर सृजन ।
ReplyDeleteजी हृदय से आभार आपका आदरणीय।
Deleteअत्यंत मनमोहक, मनहारी सृजन दी।
ReplyDeleteकाफी समय बाद ब्लॉग पर आपने रचना प्रकाशित की है बहुत बहुत अच्छा लगा दी कृपया निरंतरता बनाये रखिये न अगर संभव हो।
सस्नेह प्रणाम दी।
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १९ जुलाई २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
सस्नेह आभार प्रिय श्वेता आपने सच कहा बहुत दिन बाद आई संकोच के साथ पर बहुत अच्छा लगा आप सब से मिलकर आप सब का स्नेहिल अपनापन पाकर।
Deleteमैं पाँच लिंक पर अवश्य उपस्थित रहूँगी।
अब सदा निरंतरता बनाए रखने का प्रयास करूंगी।
सस्नेह
बहुत सुंदर सराहनीय सृजन।
ReplyDeleteहर बंद उमंग बरसाता महकता-सा..
सस्नेह आभार आपका प्रिय अनिता ।
Deleteअच्छा लगा आपको ब्लॉग पर देखकर।
सस्नेह।
वाह!कुसुम जी बहुत खूबसूरत सृजन...माटी की सुगंध बडी मनमोहन लगती है ।
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका शुभा जी आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ।
Deleteसस्नेह।
ऐसी खूबसूरत छटा सावन की मनमस्तिष्क में उजागर कर दी आपकी लेखनी ने...
ReplyDeleteलाजवाब सृजन
वाह !!!
बहुत बहुत आभार आपका सुधा जी आपकी बहुमूल्य टिप्पणी से सृजन सार्थक हुआ।
Deleteसस्नेह।
बहुत बहुत सुन्दर मधुर रचना
ReplyDeleteजी हृदय से आभार आपका आदरणीय।
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