Wednesday 17 July 2024

सावन मनभावन


 सावन मनभावन 


ऋतु का सुंदर रूप उजागर

सावन आतुर है आने को।

मन वीणा में सरस रागिनी 

गान खुशी का अब गाने को।


ओस कणों के संग सुनहली,

उर्मिल देखो क्रीड़ा करती।

सूरज की चमकीली बाँहें,

वसुधा आँगन आभा भरती।

हवा चली है, मन मुकुलित सा

मचल रहा सब कुछ पाने को।


आज पवन है भीगी भीगी,

पात-पात निखरा-निखरा।

हर बिरवे की डाली मुखरित, 

कानन का आँगन हरा-भरा।

श्याम सलौने मचल रहे हैं,

आकाश रेख तक छाने को।।


माटी महकी सौरभ बिखरा,

सरित कूल दादुर का खेला‌

विहग टोलियाँ कलरव करती,

खुशियों का सजता है मेला।

कवि के उर  में कविता मचली

भावों के दीप जलाने को।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

12 comments:

  1. Replies
    1. जी हृदय से आभार आपका आदरणीय।

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  2. अत्यंत मनमोहक, मनहारी सृजन दी।
    काफी समय बाद ब्लॉग पर आपने रचना प्रकाशित की है बहुत बहुत अच्छा लगा दी कृपया निरंतरता बनाये रखिये न अगर संभव हो।
    सस्नेह प्रणाम दी।
    सादर।
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    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १९ जुलाई २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    1. सस्नेह आभार प्रिय श्वेता आपने सच कहा बहुत दिन बाद आई संकोच के साथ पर बहुत अच्छा लगा आप सब से मिलकर आप सब का स्नेहिल अपनापन पाकर।
      मैं पाँच लिंक पर अवश्य उपस्थित रहूँगी।
      अब सदा निरंतरता बनाए रखने का प्रयास करूंगी।
      सस्नेह

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  3. बहुत सुंदर सराहनीय सृजन।
    हर बंद उमंग बरसाता महकता-सा..

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    1. सस्नेह आभार आपका प्रिय अनिता ।
      अच्छा लगा आपको ब्लॉग पर देखकर।
      सस्नेह।

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  4. वाह!कुसुम जी बहुत खूबसूरत सृजन...माटी की सुगंध बडी मनमोहन लगती है ।

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    1. हृदय से आभार आपका शुभा जी आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ।
      सस्नेह।

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  5. ऐसी खूबसूरत छटा सावन की मनमस्तिष्क में उजागर कर दी आपकी लेखनी ने...
    लाजवाब सृजन
    वाह !!!

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    1. बहुत बहुत आभार आपका सुधा जी आपकी बहुमूल्य टिप्पणी से सृजन सार्थक हुआ।
      सस्नेह।

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  6. बहुत बहुत सुन्दर मधुर रचना

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    1. जी हृदय से आभार आपका आदरणीय।

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