Sunday, 7 April 2024

गीतिका


 गीतिका 


हार गले में फूलों के हो श्रम से मोती लाना होगा।

कठिन नहीं होगा अब कुछ भी गीत जीत का गाना होगा।


दृढ़ता से आगे बढ़लें तो राहें सदा मिला करती है।

तजकर अंतस का आलस बस उद्यम से सब पाना होगा।


दुख के काले बादल छाए हाथों से सब छूटा जाए।

जो बीता वो बीत गया अब नवल हमारा बाना होगा।।


आत्म साधना करते रहना ध्येय मोक्ष का रखना शाश्वत । 

पुण्य गठरिया बाँध रखो तुम सदन छोड़ कब जाना होगा। 


पर्यावरण स्वच्छ रखना है इससे ही मानव हित समझो।

दानी बड़ी प्रकृति अपनी हर चिड़िया को दाना होगा।


मातृभूमि पर प्राण वार दें प्रज्ञा से यह निश्चय कर लें।

एक साथ मिलकर ही सब को बैरी पर अब छाना होगा।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

7 comments:

  1. अति सुंदर भावपूर्ण और.संदेशात्मक गीत दी।
    सस्नेह प्रणाम
    सादर।
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    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार ०९ अप्रैल २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. बहुत बहुत सुन्दर रचना

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  3. बहुत ही सुन्दर

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  4. बेहतरीन पंक्तियाँ 💐

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  5. वाह....कुुसुमजी क्या खूब ल‍िखा है .....

    ''दुख के काले बादल छाए हाथों से सब छूटा जाए।
    जो बीता वो बीत गया अब नवल हमारा बाना होगा।।''...

    सच मान‍िए इस बेहद सकारात्मक सोच की आज कल बहुत आवश्यकता है...

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  6. हर छंद बेहद लाजवाब ... बहुत सुन्दर ...

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