Wednesday, 17 May 2023

धरा फिर मुस्कुराई


 धरा फिर मुस्कुराई


सिंधु से आँसू उठाकर 

बादलों ने घर दिए

ताप से जलती धरा पर

लेप शीतल कर दिए।


नेह सिंचित भूमि सरसी

पोर मुखरित खिल गया

ज्यों वियोगी काव्य को

छंद कोई मिल गया

गूंथ अलके श्यामली सी

फूल सुंदर धर दिए।।


ठूंठ होते पादपों पर

कोंपले खिलने लगी

प्राण में नव वायु दौड़ी

आस फिर फलने लगी

ज्योति हर कण में प्रकाशित

भोर ने ये वर दिए।।


शाख पर खिलते मुकुल पर

तितलियों ने गीत गाये

भूरि राँगा यूँ बिखरकर

पर्व होली का मनाये

ये कलाकृति पूछती है

रंग किसने भर दिए।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Thursday, 11 May 2023

हम तुम


 तुम हम


हृदय खिला है उपवन जैसा

हरा हुआ मन पीत

सरगम बजती पंचम सुर में

गूंज रहे हैं गीत।


सरिता के तट बैठे तुम-हम

पाँव नीर में डाल

झिंगुर गुनगुन गीत सुनाते

हवा बजाती ताल

जीवन पथ के पल-क्षण सुंदर 

याद रखो सब मीत।।


सुख की सब सौगातें प्यारी

सदा रहेंगी साथ

हर पथ पर हम चले उमंगित

लिए हाथ में हाथ

कभी जीत के हार गले में

कभी हार में जीत।।


झंझावात सभी झेले थे

इक दूजे के संग

पर चेहरे की मुस्कानों का

दिखे न फीका रंग

भला लगे हर बंधन साथी 

भली लगे हर रीत।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'