Tuesday, 27 December 2022

अशआर मेरे


 कुछ अशआर मु-फा-ई-लुन (1-2-2-2)×4


सुनों ये बात है सच्ची जहाँ दिन चार का मेला।

फ़कत दिन चार के खातिर यहां तरतीब का खेला। 


शजर-ए-शाख पर देखो अरे उल्लू लगे दिखने।

नहीं ये रात की बातें ज़बर क़िस्मत लगे लिखने।


कदम इक ना चले साथी सफ़र-ए-जिंदगी में जब।

अगर सोचें रखा क्या है भला इस जिंदगी में अब।


किसी आहट अगर चौंको निगाहें बस उठा लेना।

खड़े हम आज तक रहबर नजर भर मुस्कुरा देना।


कभी तदबीर सोयी सी कभी आलस जगा रहता।

करें दोनों कि जब छुट्टी फिरे तकदीर मैं कहता ।


किसी भी राह गुजरेंगे मगर मंजिल वही होगी।

सभी के काफिले रहबर सफर की इन्तहां होगी।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Saturday, 24 December 2022

शशधर


 गीतिका:1222×4


शशधर


उठा राकेश निंद्रा से  सकल दिशि ज्योत्सना छाई।

नवल उस ज्योति की आभा क्षितिज से भूमि तक‌ आई।।


रजत की इक वरूथी पर सुधाधर बैठ आया है।

निशा का नील आनन भी चमक से हो रहा झाई।।


चमाचम हीर जग बुझ कर कलाधर को नमन करते।

वहाँ मंदाकिनी भी साथ अपने कर चँवर लाई।।


अहा इस रात का सौंदर्य वर्णन  कौन कर सकता।

कवित की कल्पना में भी न ऐसी रात ढल पाई।।

 

रजत के ताल बैठा शशि न जाने कब मचल जाए।

भ्रमित से स्नेह बंधन में जकड़ कर रात गहराई।। 


'कुसुम' इस रात पर मोहित निहारे चाँद अनुपम को।

हवाओं ने मधुर स्वर में सरस सी रागिनी गाई।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Monday, 19 December 2022

शंख रव (महामंजीर सवैया)


 महामंजीर सवैया, मापनी:-112 112 112 112, 112 112 112 112 12.


शंख रव

कलियाँ महकी महकी खिलती, अब वास सुगंधित भी चहुँ ओर है।

जब स्नान करे किरणें सर में, लगती निखरी नव सुंदर भोर है।

बहता रव शंख दिशा दस में, रतनार हुआ नभ का हर कोर है।

मुरली बजती जब मोहन की, खुश होकर नाच उठे मन मोर है।।


स्वरचित 

कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'।

Tuesday, 13 December 2022

व्यंजना पीर जाई


 व्यंजना पीर जाई


पीर ही है इस जगत में

व्यंजनाओं में ढली जो

आँख से टपकी कभी वो

मन वीथिका में पली जो।।


रात के आँसू वही थे

लोक में जो ओस फैली

चाँद की भी देह सीली

व्योम की भी पाग मैली

ये हवाएँ क्यूँ सिसकती 

थरथरा कर के चली जो।।


त्रास के बादल घुमड़ते

और व्यथा से घट झरा है

वेदना की दामिनी से

शूल का भाथा भरा है

नित सुलगती ताप झेले

अध जली काठी जली जो।।


भाव मणियाँ गूँथती है 

मसी जब आकार लेती

तूलिका से पीर झांके 

लक्षणा जब थाप देती

गूढ़ मन के गोह बैठी

भावना से है छली जो।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Wednesday, 7 December 2022


 मोहिनी 


चंद्रमुख आभा झरे

रूपसी मन मोहिनी

उच्च शोभित भाल है

मीन दृग में चाँदनी।।


देह चंदन महकता

गाल पाटल रच रहे

नाशिका शुक चोंच सम

भाव शुचिता के गहे

तुण्ड़ कोमल मखमली 

ओष्ठ रंगत लोहिनी।।


रूप पुष्पित पुष्प ज्यों

भृंग लट उड़ते मधुप

माधुरी लावण्य है

चाल चलती है अनुप

देख परियाँ भी लजाए

स्वर्ण काया सोहिनी।


बेल फूलों की नरम 

कल्पना कवि लेख सी

किस भुवन की लावणी

श्रेष्ठ दुर्लभ रेख सी

मेह हो अनुराग का

कामिनी प्रियदर्शिनी।। 


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Friday, 2 December 2022

सूर्य मिलन की चाह


 गीतिका 

11212×4


सूर्य मिलन की चाह


क्षणदा दबे चरणों चली शशिकांत भी मुख मोड़ता।

निशि रंग में निज को समा कुछ छाप भी वह छोड़ता।


रजनी ढली अब जा रही उगती किरण लगती भली।

उजला कहाँ अब चाँद वो जब देह ही निज गोड़ता।


मन चाह लेकर याद में भटका रहा हर रात में।

पर सूर्य तो अनभिज्ञ सा चलता रहा बस दौड़ता।


झरती प्रभा शत हाथ से  नित चंद्र के हर भाग से।

मन में यही अभिलाष है कब तार सूरज जोड़ता।


घर एक ही उनका मगर पर मिल नहीं सकते कभी।

गति चाल ही बस है अलग हर दिन सदा हिय तोड़ता।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'