Sunday, 6 March 2022

उषा काल


 उषा काल


द्युति वर्तुल छलक रहे है

बरस रही कंचन धारा

नीला नभ रतनार चुनर

दमक रहा है विश्व सारा।


उर्मियाँ बाहें पसारे

श्याम मुख उबटन मले ज्यों

फिर निखर कर पीत वर्णी

धैर्य से दुल्हन चले ज्यों

सिंदुरी आभा अलोकित

डूबता सा भोर तारा।।


खोल झरोखा पूरब में

तेजोमय ये वीर कौन

अगन पालकी में चढ़कर

अगवाना ये धीर कौन

अंग पावक तेज दहके

बाँटता है जग उजारा।।


स्वर्ण बहता जा रहा है

नीलगर ने रंग छोड़े 

केसरी सी ओढ़नी में

सुनहरी से तार जोड़े

झिलमिलाता सिंधु पानी

रश्मियों ने है सवारा।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

15 comments:

  1. बेहतरीन रचना सखी।

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    1. हृदय से आभार आपका सखी, लेखन सार्थक हुआ।
      सस्नेह।

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  2. बहुत सुन्दर , मधुर रचना

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    1. हृदय से आभार आपका आलोक जी ।
      सादर।

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  3. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (07 मार्च 2022 ) को 'गांव भागते शहर चुरा कर' (चर्चा अंक 4362) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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    1. जी हृदय से आभार आपका चर्चा मंच पर रचना को शामिल करने के लिए।
      मैं चर्चा पर उपस्थित रहूंगी।
      सादर सस्नेह।

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  4. बहुत सुंदर रचना,

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    1. हृदय से आभार आपका उत्साहवर्धन प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ।
      सस्नेह।

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  5. स्वर्ण बहता जा रहा है

    नीलगर ने रंग छोड़े

    केसरी सी ओढ़नी में

    सुनहरी से तार जोड़े

    झिलमिलाता सिंधु पानी

    रश्मियों ने है सवारा।।

    बेहद खूबसूरत रचना।

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    1. हृदय से आभार आपका सखी, लेखन सार्थक हुआ।
      सस्नेह।

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  6. श्याम मुख उबटन मले ज्यों

    फिर निखर कर पीत वर्णी -सच है -सांवला मुख किसी को स्वीकार नहीं होता

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    1. हृदय से आभार आपका आपकी विशिष्ट प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सस्नेह।

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  7. बहुत सुंदर सराहनीय रचना ।

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    1. हृदय से आभार आपका जिज्ञासा जी आपकी मोहक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सस्नेह।

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  8. स्वर्ण बहता जा रहा है

    नीलगर ने रंग छोड़े

    केसरी सी ओढ़नी में

    सुनहरी से तार जोड़े

    झिलमिलाता सिंधु पानी

    रश्मियों ने है सवारा।।
    बहुत ही मनमोहक शब्दचित्रण उकेरता लाजवाब नवगीत ...अद्भुत बिम्ब एवं व्यंजनाएं
    वाह!!!

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