Friday, 18 February 2022

विवक्त!


 विविक्त!


जेल में दो कैदी एक साथ एक बहुत गंभीर बिमारी से बाहर आया ही था कमजोरी और खिन्नता से भरा, दूसरा भी हर रोज कुछ शारीरिक पीड़ा से गुजर रहा था।

दोनों साथ रह कर अपना समय एक दूसरे के सहारे बीता रहे थे, दोनों को एक-दूसरे की आदत हो गई गंभीर कैदी हर रोज प्रार्थना करता दूसरे कैदी की सजा उसकी सजा से पहले खत्म न हो...

दूसरे को सश्रम कारावास के दौरान दूसरे कैदियों के साथ काम करते हुए अचानक कोरोना

ने जकड़ लिया।

अब उसे वहाँ से निकाल दूसरे बैरक में डाल दिया गया।

पहला कैदी फूट-फूट कर रो पड़ा भगवान से शिकायत करने लगा मेरी इतनी सी प्रार्थना नहीं सुनी तूने हे निर्मोही एक साथी था उसे भी दूर कर दिया।

तभी सरसराती आवाज आई  तूने कहा उसे मैंने सुन लिया उसकी सजा तेरी सजा के बाद ही खत्म करने का मैंने तथास्तु कह दिया तूझे, पर हे स्वार्थी मानव तूने उसका साथ नहीं माँगा उसके लिए सजा माँगी थी मैंने तो साथ ही छीना है सजा कायम है।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

19 comments:

  1. हे प्रभु ! शब्दों को नहीं, भावनाओं को समझा करो

    ReplyDelete
    Replies
    1. सही कहा आपने मासूमों की मासूमियत को तो समझो से दया निधि।
      हृदय से आभार आपका।

      Delete
  2. बहुत बढियां

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका भारती जी।
      सस्नेह।

      Delete
  3. ऊपर वाला अन्दर तक झांक लेता है।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी सही कहा तभी तो लोग आस्था रखते हैं ।
      सादर आभार आपका।

      Delete

  4. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१९-०२ -२०२२ ) को
    'मान बढ़े सज्जन संगति से'(चर्चा अंक-४३४५)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. हृदय से आभार आपका अनीता मेरी रचना को चर्चा में स्थान देने के लिए।
      मैं चर्चा पर उपस्थित रहूंगी।
      सादर सस्नेह।

      Delete
  5. इसीलिए तो कहते हैं कि बोलते समय शब्दों का चुनाव बहुत सोच समझकर करना चाहिए।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी सही कहा मीना जी हृदय से आभार आपका, लेखन सार्थक हुआ।
      सस्नेह।

      Delete
  6. वाह!बहुत खूब कुसुम जी । तभी तो कहा है न कि तोल -मोल कर बोल ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हृदय से आभार आपका शुभा जी ।
      उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
      सस्नेह।

      Delete
  7. Replies
    1. हृदय से आभार आपका नूपुर जी उत्साह वर्धन हुआ।
      सस्नेह।

      Delete
  8. पद्य की तरह गद्य सृजन कौशल भी लाजवाब है कुसुम जी! बहुत सुन्दर और सीख भरी बात कही आपने..,इन्सान को बोलने से पूर्व सोचना ज़रूर चाहिए ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. अभिभूत हूं मीना जी आपके स्नेह के आगे , सारगर्भित टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ।
      हृदय से आभार आपका।
      सस्नेह।

      Delete
  9. मानव मन को उचित मार्गदर्शन । सुंदर सराहनीय अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  10. रचना की गूढ़ता में जाने के लिए हृदय से आभार जिज्ञासा जी।
    सस्नेह

    ReplyDelete