Wednesday, 26 January 2022

बगुले


 बगुले 


कितना धोया बाहर से पर

गूढ़ कलुषिता बैठी भाई

सारी जगती जिसमें रमती

तृष्णा मोह राग की जाई।


कूप कूप में भाँग पड़ी है

 मानव का पानी उतर गया

बूँद-बूँद है गरल भरी सी

अंतस चूकी सब भाव दया

देखो चाल बचाना भइया

घाट-घाट पर फैली काई।।


दान धर्म की बातें थोथी

दाँत दिखाने वाले दूजे

छोड़ छाड़ सब गोरखधंधा

देव मानकर उन को पूजे

शुद्धिकरण कर तन का गंगा

मैल मिटा मन का कब पाई।।


धौला पहने बगुले बैठे

हृदय खोह में खोट भरा है

बड़े-बड़े करते सब दावे

लेकिन झूट का मैल धरा है

कितनी बात छुपाना चाहो 

बूझ सभी लेती है दाई।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

32 comments:

  1. बगुला भगतों की पोल खोलती अत्यंत धारदार अभिव्यक्ति दी।
    सस्नेह प्रणाम
    सादर।

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    1. रचना के भावों को समर्थन देती टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ श्वेता, आपकी मोहक प्रतिक्रिया रचना का उपहार है।
      सस्नेह।

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २८ जनवरी २०२२ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    1. सस्नेह आभार श्वेता पांच लिंक पर आना सदा मैहक होता है।
      मैं मंच पर उपस्थित रहूंगी।
      सस्नेह।

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  3. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (२८-०१ -२०२२ ) को
    'शब्द ब्रह्म को मेरा प्रणाम !'(चर्चा-अंक-४३२४)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. सस्नेह आभार प्रिय अनिता चर्चा मंच पर आना सदा मोहक होता है मेरे लिए।
      मैं मंच पर उपस्थित रहूंगी।
      सस्नेह।

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  4. सच्ची बात कहती रचना।

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    1. हृदय से आभार आपका आदरणीय।
      सादर।

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  5. Replies
    1. हृदय से आभार आपका आदरणीय।
      सादर।

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  6. बहुत पैनेपन से जगती तल के यथार्थ को उद्घाटित करता लाजवाब सृजन ।

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    1. हृदय से आभार आपका मीना जी सराहनीय शब्द गीत को गति प्रदान करते हैं ।
      सस्नेह।

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  7. बहुत बहुत सुन्दर

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    1. हृदय से आभार आपका आलोक जी।
      सादर।

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  8. समसामयिक रचना । चुनाव में तो खास कर सब श्वेतधारी बगुले बने शिकार की तलाश में रहते हैं । बेहतरीन अभिव्यक्ति कुसुम जी ।

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    1. सही विश्लेषण करती सटीक प्रतिक्रिया से रचना को नव आयाम मिले संगीता जी।
      सस्नेह आभार आपका।

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  9. धौला पहने बगुले बैठे

    हृदय खोह में खोट भरा है

    बड़े-बड़े करते सब दावे

    लेकिन झूट का मैल धरा है

    कितनी बात छुपाना चाहो

    बूझ सभी लेती है दाई।।


    लाजवाब सीजन!
    एकदम सही कहा आपने
    कपड़े एकदम सफेद है पर इरादों गंदे हैं और चरित्र परइतने दाग और धब्बे लगे हैं जिन्हें साफ करना नामुमकिन है!

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    1. रचना के भावों की गूढ़ता तक पहुंच कर आपने सटीक विश्लेषण किया प्रिय मनीषा।
      लेखन को सार्थकता देती सुंदर प्रतिक्रिया आपकी।
      सस्नेह आभार।

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  10. समसामयिक सार्थक रचना।

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    1. सस्नेह आभार पम्मी जी, आपकी मोहक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सस्नेह।

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  11. बहुत ही मारक। तब तो चारों ओर बगुले महाराज जी की जयकार हो रही है। अति सुन्दर सृजन।

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    1. समर्थन देते शब्दों से रचना के भाव सार्थक हुए अमृता जी।
      सटीक व्याख्या आज के बगुलों की।
      सस्नेह।

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  12. बहुत सुन्दर और साहसी रचना कुसुम जी !
    एक बात याद रखिएगा - बगुला भगतों के दिल का एक्सरे करना गुनाह-ए-अज़ीम है.

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    1. सादर आभार आदरणीय! आप के मिज़ाज़ से मिलते भाव है आपको पसंद आए, लेखन सार्थक हुआ।
      रही बात गुनाह-ए-अज़ीम की तो वो तो हो चुका अब रब ही संभाले अपनी नाव।
      सादर।

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  13. बहुत सुंदर और सार्थक सृजन सखी।

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    1. बहुत बहुत आभार सखी उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया के लिए।
      सस्नेह।

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  14. धौला पहने बगुले बैठे

    हृदय खोह में खोट भरा है

    बड़े-बड़े करते सब दावे

    लेकिन झूट का मैल धरा है

    कितनी बात छुपाना चाहो

    बूझ सभी लेती है दाई।।.. चनावी रणबांकुरों की सटीक अभ्यर्थना ।

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    1. विस्तृत व्याख्यात्मक प्रतिपंक्तियाँ आपकी जिज्ञासा जी
      लेखन को संबल मिला।
      ढेर सा स्नेह आभार।
      सस्नेह।

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  15. सत्य कहने का आपका अंदाज़ लाजवाब है ...
    दाई से कुछ नहीं छुपता है ...

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    1. लेखन सार्थक हुआ आ0 नासवा जी आपकी सकारात्मक प्रतिक्रिया से।
      सादर आभार।

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  16. दान धर्म की बातें थोथी

    दाँत दिखाने वाले दूजे

    छोड़ छाड़ सब गोरखधंधा

    देव मानकर उन को पूजे

    शुद्धिकरण कर तन का गंगा

    मैल मिटा मन का कब पाई
    तन के शुद्धिकरण से मन का मैल मिटाना गंगा के बस में भी नहीं...
    बगुलाभक्तों सै सावधान करता लाजवाब नवगीत।

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  17. बहुत सही सुधा जी,आपने सटीक भाव रखें रचना के समर्थन में ,लेखन सार्थक हुआ।
    सस्नेह आभार आपका।

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