Saturday, 18 December 2021

रूपसी


 गीतिका (हिन्दी ग़ज़ल)


रूपसी


खन खनन कंगन खनकते, पांव पायल बोलती हैं।

झन झनन झांझर झनककर रस मधुर सा घोलती हैं।।


सज चली श्रृंगार गोरी आज मंजुल रूप धर के।

ज्यों खिली सी धूप देखो शाख चढ़ कर डोलती है।।


आँख में सागर समाया तेज चमके दामिनी सा।

रस मधुर से होंठ चुप है नैन से सब तोलती है।


चाँद जैसा आभ आनन केसरी सा गात सुंदर।

रक्त गालों पर घटा सी लट बिखर मधु मोलती है।।


मुस्कुराती जब पुहुप सी दन्त पांते झिलमिलाई।

सीपियाँ जल बीच बैठी दृग पटल ज्यों खोलती है।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

16 comments:

  1. आपकी लिखी रचना सोमवार. 20 दिसंबर 2021 को
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    1. हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ संगीता जी, पांच लिंक पर रचना को शामिल करने के लिए हृदय से आभार।
      मैं मंच पर उपस्थित रहूंगी।
      सादर सस्नेह।

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  2. बेहद सुंदर रचना दी,शब्द संयोजन अति मनमोहक, शब्द-शब्द रूनझुनी।

    प्रणाम दी
    सादर।

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    1. सस्नेह आभार प्रिय श्वेता आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सस्नेह।

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  3. चाँद जैसा आभ आनन केसरी सा गात सुंदर।

    रक्त गालों पर घटा सी लट बिखर मधु मोलती है।।
    घटा सी लट मधु मोलती!!!
    अद्भुत लाजवाब ....
    कमाल की गजल
    एक से बढ़कर एक शेर
    वाह!!!

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    1. हृदय से आभार आपका सुधा जी आपकी प्रबुद्ध शब्दावली सदा सृजन को और उच्चता पर ले जाता है ।
      सस्नेह।

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  4. शब्दों में रूपसी के रूप को बहुत मधुरता से संवारा है कुसुम बहन |
    सज चली श्रृंगार गोरी आज मंजुल रूप धर के।
    ज्यों खिली सी धूप देखो शाख चढ़ कर डोलती है।।/////
    क्या बात है |गोरी के रूप की धूप आँखें चौंधियाए!!!!!

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    1. सस्नेह रेणु बहन,आपकी स्नेह भरी प्रतिक्रया सदा मेरे सृजन को विशिष्ठ बना देती है।
      हृदय से आभार आपका।
      सस्नेह।

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  5. हम तो आपके शब्द संयोजन से रूपसी का अक्स देख रहे हैं।
    लाजवाब 👌👌👌👌👌

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    1. बहुत बहुत आभार आपका संगीता जी,आप की उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना गतिमान हुई।
      सादर।

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका आलोक जी।
      सादर।

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  7. वाह बेहद खूबसूरत रचना।

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    1. सस्नेह आभार सखी आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सस्नेह।

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  8. सुंदर, बहुत सुंदर ! बेहतरीन कृति ।

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    1. सस्नेह आभार आपका जिज्ञासा जी, आपकी सुंदर प्रतिक्रिया से सृजन सम्मानित हुआ।
      सस्नेह।

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