Wednesday, 13 October 2021

कवि और सृजन


 कवि और सृजन


जब मधुर आह्लाद से भर

कोकिला के गीत चहके

शुष्क वन के अंत पट पर

रक्त किंशुक लक्ष दहके।


कल्पना की ड़ोर थामें

कवि हवा में चित्र भरता

लेखनी से फूट कर फिर

चासनी का मेघ झरता

व्यंजना के पुष्प दल पर 

चंचरिक सा चित्त बहके।।


जब सुगंधित से अलंकृत

छंद लय बध साज बजते

झिलमिलाते रेशमी से

उर्मियों के राग सजते

सोत बहते रागनी के

पंच सुर के पात लहके।।


वास चंदन की सुकोमल

तूलिका में ड़ाल लेता

रंग धनुषी सात लेकर

टाट को भी रंग देता

शब्द धारण कर वसन नव

ठाठ से नभ भाल महके।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

15 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(१४-१०-२०२१) को
    'समर्पण का गणित'(चर्चा अंक-४२१७)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका चर्चा मंच पर उपस्थित रहूंगी।
      चर्चा पर रचना को शामिल करने के लिए हृदय से आभार।
      सस्नेह।

      Delete
  2. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
      उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए।
      सादर।

      Delete
  3. कवि की रचना प्रक्रिया का सुंदर चित्रण

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका अनिता जी, ब्लाग पर सदा स्वागत है आपका।
      सस्नेह।

      Delete
  4. जब सुगंधित से अलंकृत
    छंद लय बध साज बजते
    झिलमिलाते रेशमी से
    उर्मियों के राग सजते
    सोत बहते रागनी के
    पंच सुर के पात लहके।।
    बहुत ही सुंदर😍💓

    ReplyDelete
    Replies
    1. ढेर सा स्नेह आभार मनीषा जी आपकी प्रतिक्रिया से उत्साह वर्धन हुआ।
      सस्नेह।

      Delete

  5. वास चंदन की सुकोमल

    तूलिका में ड़ाल लेता

    रंग धनुषी सात लेकर

    टाट को भी रंग देता

    शब्द धारण कर वसन नव

    ठाठ से नभ भाल महके।।...कवि मन की सुंदर अभिव्यंजना ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. मोहक जिज्ञासा जी मोहक अंदाज है आपका ,मन खुश हुआ सदा स्नेह बनाए रखें।
      सस्नेह।

      Delete
  6. बहुत सुंदर रचना सखी।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका सखी।
      उत्साहवर्धक हुआ।
      सस्नेह।

      Delete
  7. कल्पना की ड़ोर थामें

    कवि हवा में चित्र भरता

    लेखनी से फूट कर फिर

    चासनी का मेघ झरता

    व्यंजना के पुष्प दल पर

    चंचरिक सा चित्त बहके।।

    वाह!!!
    कवि की कल्पना और छन्दबद्ध रचना
    लाजवाब नवगीत रच डाला
    बहुत ही उत्कृष्ट।

    ReplyDelete
    Replies
    1. वाह! सुधा जी आपकी मोहक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित होती है।
      विस्तृत भाव प्रणव टिप्पणी के लिए हृदय से आभार।
      सस्नेह।

      Delete