Tuesday, 7 September 2021

श्याम मोहिनी


 श्याम मोहिनी


रजत चाँद की निर्मल आभा

लो लहर पलक पर लहरी हैं ।


वो झांक रहे हैं इधर उधर

टिमटिम कर अंबक मटकाते

नीलाम्बर की बाहों में घिर

मणिकांत मणी से मनभाते

दौड़ धूप से क्लांत शिथिल अब

निर्निमेष आँखें ठहरी है।।


रजनी कर श्रृंगार निकलती

रुनझुन पायल झनकाती

श्याम मोहिनी वो सुकुमारी

नीले कंगन खनकाती

भ्रमण करे जब निशा सुंदरी

तारक दल जैसे पहरी है।।


अलंकार नित नव घड़वाती

रंग रूप उजला सा भरने 

पर जब तक उजली वो होती 

काल नवल सा लगता झरने

जब चलती है धीरे लगता

चाल चले कोई गहरी है।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

27 comments:

  1. बहुत बहुत सुन्दर

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    1. जी उत्साह वर्धन के लिए हृदय से आभार।
      सादर।

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।

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  3. रजनी कर श्रृंगार निकलती

    रुनझुन पायल झनकाती

    श्याम मोहिनी वो सुकुमारी

    नीले कंगन खनकाती

    बहुत सुन्दर रचना

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    1. बहुत बहुत आभार आपका उत्साहवर्धन करती सुंदर प्रतिक्रिया।
      सादर।

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  4. रजनी सी रमणीय रचना... बहुत सुन्दर!

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
      उत्साहवर्धन हुआ।
      सादर।

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  5. Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
      उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
      सादर।

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  6. भ्रमण करे जब निशा सुंदरी

    तारक दल जैसे पहरी है।
    सुंदर बात

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    1. बहुत बहुत आभार आपका उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया।
      सस्नेह।

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  7. श्‍याम मोह‍िनी पर इतना खूबसूरत व‍िन्‍यास ल‍िखा है, वाह गज़ब>>>रजनी कर श्रृंगार निकलती

    रुनझुन पायल झनकाती

    श्याम मोहिनी वो सुकुमारी

    नीले कंगन खनकाती

    भ्रमण करे जब निशा सुंदरी

    तारक दल जैसे पहरी है।।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका अलकनंदा जी ,आपकी मनोहर प्रतिक्रिया से रचना नव उर्जा से प्रस्फुटित हुई।
      सादर सस्नेह।

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  8. Replies
    1. बहुत आभार आपका जेन्नी जी उत्साहवर्धन के लिए ।
      सस्नेह

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  9. रजत चांद की निर्मल आभा! वाह..बहुत सुन्दर। बहुत खूब।

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका।
      उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया आपकी रचना को सार्थकता दे रही है ।
      सादर।

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  10. शब्दों से जादूगरी करी है आपने ... श्याम की मोहिनी पे इतना कमाल ...
    शब्दोब से बोलती है रचना ...
    गणेश चतुर्थी की हार्दिक बधाई हो ...

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    1. जी सादर आभार आपका, आपकी सुंदर उत्साहवर्ध प्रतिक्रिया से रचना गौरान्वित हुई।
      सादर।

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  11. उम्मीद करते हैं आप अच्छे होंगे

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  12. वो झांक रहे हैं इधर उधर

    टिमटिम कर अंबक मटकाते

    नीलाम्बर की बाहों में घिर

    मणिकांत मणी से मनभाते

    दौड़ धूप से क्लांत शिथिल अब

    निर्निमेष आँखें ठहरी है।। वाह, प्रकृति की स्वर्णिम आभा बिखेरती सुन्दर पंक्तिया, नायाब रचना ।

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    1. आपकी सराहना से रचना को नये आयाम मिले जिज्ञासा जी,
      मन हर्षित हुआ,उर्जा वान प्रतिक्रिया।
      सस्नेह।

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  13. Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका।
      रचना सार्थक हुई।
      सस्नेह।

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  14. बहुत बहुत आभार आपका,पाँच लिंक पर रचना को मान देने के लिए।
    मैं लिंक पर उपस्थित रहूंगी।
    सादर।

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