Saturday, 11 September 2021

स्वयं पर शासन


 

स्वयं पर शासन


निज पर जो शासन करते हैं

क्षुद्र भाव का करते सारण

शुभ्र गुणों को विकसित करते

जिससे सुरभित होते भू कण।


आदर्शों को रखें सँभाले

मणियों जैसे अमूल्य विचार

परंपरा में देते जग को

मंजु शुद्ध समदृष्टि आचार

किंचित लेश मात्र भी विचलित

दृश्य नहीं जो करते धारण।।


स्वार्थ त्याग की करे तपस्या  

राग द्वेष औ माया तजकर 

पुरुषार्थ का करते संकल्प 

आत्मानंद मार्ग में रमकर 

ऐसी संत स्वभावी आत्मा

सभी दुखो का करे निवारण।।


साम्यभाव हो दृष्टिपथ जिनका

परहित अर्पित भाव उच्चतम

वसुधा पर प्रकाश फैलाते 

विदेही युगवीर पुरुषोत्तम

बंधन से वे मुक्त सदा जो

निस्पृहता का करे आचरण।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

10 comments:

  1. अन्यतम भावों का उच्चतम प्रकटीकरण । कठिनतम तो है स्वयं पर शासन किंतु जो आत्मतत्व से ही सम्राट होते हैं उनके लिए ये सहज है । अति सुन्दर कृति के लिए हार्दिक बधाई ।

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    1. जी गहन दर्शन है आपकी बातों में, सुंदर टिप्पणी से रचना और भी अर्थ संगत हुई।
      सादर सस्नेह।

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (12-9-21) को "है अस्तित्व तुम्ही से मेरा"(चर्चा अंक 4185) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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    कामिनी सिन्हा


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    1. बहुत बहुत आभार आपका कामिनी जी रचना को चर्चा में स्थान देने के लिए।
      मैं चर्चा पर उपस्थित हो आई।
      सादर सस्नेह।

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  3. बिलकुल सही परिभाषा दी है आपने स्वयं पर शासन करने वालों की । हर पंक्ति में बहुत सुंदर भाव ।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका जिज्ञासा जी,
      रचना सार्थक हुई।
      सस्नेह।

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  4. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति सखी।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका सखी आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सस्नेह।

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  5. जी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।

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  6. जी बहुत बहुत आभार आपका आलोक जी, सादर।

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