Saturday, 3 April 2021

समय पाहुना


 समय पाहुना


सुखद पल सलौने सपन तोड़ सोये।

लिखे छंद कोरे मसी में भिगोये।


घड़ी दो घड़ी मेघ काले भयानक

तड़ित रेख हिय पर गिरी है अचानक।

बहे कोर तक स्रोत उपधान धोये।।


सुना दर्द का मोल किसने न माना।

गई बात मुख से लुटा ज्यों खजाना।

कहीं ठेस खाकर गिरे पर न रोये।।


व्यथा की हवेली अड़ी सी खड़ी हैं।

खुशी की तिजोरी दुखों से जड़ी हैं।

समय पाहुना भी कई राह खोये।।


मचलती रही मीन जल उड़ चला था।

रहित जल नदी एक पोखर भला था।

गले रुंधते से दृगों ने छुपोये।।


कुसुम कोठारी "प्रज्ञा"

21 comments:

  1. सुना दर्द का मोल किसने न माना।

    गई बात मुख से लुटा ज्यों खजाना।

    कहीं ठेस खाकर गिरे पर न रोये।।



    व्यथा की हवेली अड़ी सी खड़ी हैं।

    खुशी की तिजोरी दुखों से जड़ी हैं।

    समय पाहुना भी कई राह खोये।।

    वाह ,अति उत्तम ,हार्दिक बधाई हो इस खूबसूरत रचना के लिए कुसुम जी, आप बहुत ही अच्छा लिखती है,बार बार पढ़ती जा रही हूँ,सोच रही हूँ क्या कहूँ, सादर नमन

    ReplyDelete
    Replies
    1. मैं अभिभूत हूं,सस्नेह आभार आपका, इतनी मोहक प्रतिक्रिया से मैं और लेखन दोनों धन्य हुए ।
      सदा स्नेह बनाए रखें
      सस्नेह।

      Delete
  2. बहुत बहुत सुन्दर रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका।
      उत्साहवर्धन हुआ।
      सादर

      Delete
  3. बहुत ही सुंदर रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी आदरणीय बहुत बहुत आभार आपका।
      सादर।

      Delete
  4. घड़ी दो घड़ी मेघ काले भयानक
    तड़ित रेख हिय पर गिरी है अचानक।
    बहे कोर तक स्रोत उपधान धोये।।
    ...बहुत ही सुंदर चिंतन रचना। हमेशा की तरह लाजवाब। ।।।।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका आपकी सुंदर जड़ाऊ प्रतिक्रिया से रचना को नव प्रवाह मिला।
      सादर।

      Delete
  5. बहुत सुन्दर् और सशक्त गीत रचना।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी आदरणीय आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सादर।

      Delete
  6. Replies
    1. बहुत बहुत स्नेह आभार।
      सस्नेह।

      Delete
  7. सुखद पल सलौने सपन तोड़ सोये।
    लिखे छंद कोरे मसी में भिगोये।
    अति सुन्दर सृजन कुसुम जी।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत सा स्नेह आभार आपका मीना जी आपकी उपस्थिति नव उर्जा का संचार करती है। सस्नेह।

      Delete
  8. समय पर इतनी अच्छी पंक्त‍ियां पढ़कर इस पाहुना के हर पल का स्वागत करने को जी चाहता है कुसुम जी...वाह व्यथा की हवेली अड़ी सी खड़ी हैं।

    खुशी की तिजोरी दुखों से जड़ी हैं।

    समय पाहुना भी कई राह खोये।।

    ...अद्भुत

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका अलकनंदा जी आपकी मुग्ध करती टिप्पणी से मन प्रसन्न हुआ साथ ही लेखन को नव उर्जा मिली।
      सस्नेह।

      Delete
  9. पूरी रचना ही मन को आनंदित कर रही है, हर पंक्ति बड़ी सुंदर और भावपूर्ण है,सुंदर सृजन के लिए हार्दिक शुभकामनाएं कुसुम जी

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका जिज्ञासा जी आपकी सार्थक प्रतिक्रिया से सृजन मुखरित हुआ।।
      सस्नेह।

      Delete
  10. जी बहुत बहुत आभार आपका चर्चा मंच पर रचना को शामिल करने के लिए।
    ये हमारे लिए हर्ष और सौभाग्य का विषय है।
    सादर।

    ReplyDelete
  11. बहुत बहुत आभार आपका रचना को गतिमान करती प्रतिक्रिया।
    सादर।

    ReplyDelete
  12. व्यथा भी कितनी खूबसूरती से लिखी जा सकती है ये इस रचना को पढ़ कर पता चला । सुंदर अभिव्यक्ति ।

    ReplyDelete