किरणों का क्रदंन
तारों की चुनरी अब सिमटी
बीती रात सुहानी सी।
कलरव से नीरव सब टूटा
जुगनू द्युति खिसियानी सी।
ओढ़ा रेशम का पट सुंदर
सुख सपने में खोई थी
श्यामल खटिया चांदी बिछती
आलस बांधे सोई थी
चंचल किरणों का क्रदंन सुन
व्याकुल भोर पुरानी सी।।
प्राची मुख पर लाली उतरी
नीलाम्बर नीलम पहने
ओस कणों से मुख धोकर के
पौध पहनते हैं गहने
चुगरमुगर कर चिड़िया चहकी
करती है अगवानी सी।।
वृक्ष विवर में घुग्घू सोते
बातें जैसे ज्ञानी हो
दिन सोने में बीता फिर भी
साधु बने बकध्यानी हो
डींगें मारे ऐसे जैसे
कहते झूठ कहानी सी।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'