Sunday, 18 October 2020

जीवन संतुलन

 जीवन संतुलन


चलो भूल जाओ अब सब कुछ

गाँठ खोल दो मन की

डर लगता क्यों देख रहे हो

तीर दृष्टि चितवन की।।


परायापन दुश्वार लगता

अलगाव भाव प्रतीति

अन्जाने हो जाती गलती 

जग की है यही रीति

आज छोड़ कर मतभेदों को

बात करें अर्जन की।।


जीवन की बीहड़ राहों पर

हाथ थाम कर चलना

अपनी राह कभी जो बदलो 

सूरज जैसे ढलना

नयी प्रभाती लेकर आना

रंगत चंपक वन की।।


मानव मन दुर्बल है जानों

कच्ची माटी फिसलन 

ढ़ोर हांकते चरवाहे सी

ढुलमुल डांडी डगमग

सदा प्रीत को मन संजोना

गुणवत्ता जावन की।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'


13 comments:

  1. सादर नमस्कार ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (13-10-2020 ) को "उस देवी की पूजा करें हम"(चर्चा अंक-3860) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    ---
    कामिनी सिन्हा

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका कामिनी जी चर्चा मंच पर रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।
      मैं तथा प्रयास उपस्थित रहूंगी।
      सस्नेह।

      Delete
  2. बहुत सुंदर रचना सखी 👌

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका सखी।

      Delete
  3. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
      उत्साह वर्धन हुआ ‌

      Delete
  4. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 21 अक्टूबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका।
      मैं मुखरित मौन पर अवश्य उपस्थित रहूंगी।
      सादर

      Delete
  5. उत्साह वर्धन का आत्मीय आभार ‌

    ReplyDelete
  6. बहुत बढ़िया।।

    ReplyDelete
  7. जीवन की बीहड़ राहों पर
    हाथ थाम कर चलना
    अपनी राह कभी जो बदलो
    सूरज जैसे ढलना
    सुन्दर संदेश देता लाजवाब सृजन
    वाह!!!

    ReplyDelete