Friday, 6 March 2020

ऐसा अभिसार चातकी का

तिमिरावगूंठित थी त्रियामा ,
आकाश के छोर अर्ध चंद्रमा।
अपनी निष्प्रभ आभा से उदास कहीं खोया,
नीले आकाश के विशाल प्रांगण में जा सोया।
तारों की झिलमिलाहट उसे चुभ गई ,
उसकी ये पीड़ा चातकी के हृदय में लग गई ।
चल पड़ी अभिसार को वो, पंख फैलाकर अपने,
सफर लम्बा होगा निश्चित पर पूरे होंगे सपने।
वो चाँद के पास होगी बहुत पास,
उड़ी पादप पल्लवों की छोड़ ओट, लिए आस।
निर्बाध गति,संभल कर उड़ती एक शब्द भी न हो
लांघ चुकी वो मर्यादा ,किसी को खबर न हो।
ध्येय था दूर,आशा अदम्य उड़ी वो मंथर,
कितना काल बीता अन्जान बढ़ती रही निरन्तर।
अचानक देखा प्रिय शशि ओझल हो रहा ,
प्राची विहान की मूंगिया आभा बिखेर रहा ।
नीले अवगुंठन को भेद भानु बाहर आए,
वो रुकी, भ्रमित किस दिशा को जाए ।
बस डोलती रही  व्याकुल सी ,
मार्तण्ड में तेजी बढी अनल सी।
झुलसा दिए उसने उसके पर सारे ,
वो आधार विहीन हो गई बेसहारे।
तीव्र गति से क्षिति पर गिरी निष्त्राण,
हा देह थी अब निष्प्राण !!!

कुसुम कोठारी।

14 comments:

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  2. साहित्यिक शब्दावली से सज्जित बहुत ही हृदयस्पर्शी रचना कुसुम जी ..रचना का अन्त करूण भाव से हृदय द्रवित कर गया ।

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    1. बहुत बहुत आभार मीना जी रचना के भावों तक पहुंच उनकी सटीक व्याख्या से रचना मुखरित हुआ ।
      आपकी प्रतिक्रिया सदा सुखद और उत्साह वर्धक होती है ।
      बहुत बहुत सा सरनेम आभार।

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  3. ध्येय था दूर,आशा अदम्य उड़ी वो मंथर,
    कितना काल बीता अन्जान बढ़ती रही निरन्तर।

    तारों की झिलमिलाहट उसे चुभ गई ,
    उसकी ये पीड़ा चातकी के हृदय में लग गई ।


    तिमिरावगूंठित थी त्रियामा ,
    आकाश के छोर अर्ध चंद्रमा।


    अपनी निष्प्रभ आभा से उदास कहीं खोया,
    नीले आकाश के विशाल प्रांगण में जा सोया।

    ओ हो कुसुम जी। ..क्या लिखती हैं आप। ये जो अनुभूति मिली आपकी ये कविता पढ़ कर। .उफ्फ

    आप मानेगी मैंने। ..ले में पढ़ डाली। ..और रोंगटे महसूस हुए पढ़ते पढते



    बहुत बहुत धनयवाद ऐसा लिखने के लिए

    ऐसा लिखते रहे और हम सबसे शेयर करते रहें टाक हमे इतना अच्छा पढ़ने को मिलता रहे

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    1. जोया जी आपकी प्रतिक्रिया बहुत ही विशिष्ट है, पुरी रचना को आपने नये अंदाज में नये प्रतिमान दिए ।
      आपकी टिप्पणी इतनी मोहक है कि अपनी ही रचना को वापस पढ़ने को मन कर गया ।
      सच मेरी रचना को आपने पुरुस्कृत कर दिया ।
      ढेर सा स्नेह ।
      सदा यूं ही स्नेह बनाए रखें।
      ससनेह।

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  4. इस मिलन ने तो जान ही लेली।
    बहुत सुंदर दृश्य गुजरे आंखों के सामने...पर अंत सुखद न रहा।
    लेकिन जब वो चल पड़ती है तभी से पाठक को पता होता है कि ये मिलन नहीं होगा।
    लिखावट में रहस्य को ओर गूढ़ किया जाए तो साहित्य का ज्यादा मजा आता है।

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    1. जी सादर आभार आपका ,लेखनी स्वतः चल पड़ी जिसमें बस चातकी की अदम्य चाहत थी और करूणा के भाव थे,
      रहस्य की कोई गुंजाइश मुझे नहीं आकर्षित कर पाई शायद ।
      खैर आपके सुझाव के लिए बहुत बहुत आभार।

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    1. जी बहुत बहुत आभार आदरणीय।
      आपका आशीर्वाद मिलता रहे ।
      सादर।

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  6. दिल को छूती बहुत सुंदर रचना, कुसुम दी।

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    1. बहुत बहुत आभार ज्योति बहन ।

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  7. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 09 मार्च 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. जी, बहुत बहुत आभार ।
      पांच लिंक मंच पर रचना को प्रस्तुत करने के लिए बहुत बहुत आभार आपका आदरणीया।

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  8. अद्भुत सृजन प्रिय कुसुम

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